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नवाँ प्रकरण |
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योग्य है, ऐसा जानकर ज्ञानवान् किसी भी पदार्थ की इच्छा नहीं करता है || ३ ॥
मूलम् ।
arsat कालो वयः किं वा यत्र द्वन्द्वानि नो नृणाम् । तान्युपेक्ष्य यथा प्राप्तवर्त्ती सिद्धिमवाप्नुयात् ॥ ४ ॥ पदच्छेदः ।
कः, असौ, कालः, वयः, किम्, वा यत्र द्वन्द्वानि, नो, नृणाम्, तानि, उपेक्ष्य, यथा, प्राप्तवर्ती, सिद्धिम्, अवाप्नुयात् ॥
शब्दार्थ |
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
यत्र=जिसमें नृणाम् = मनुष्यों को
द्वन्द्वानि नो= सुख और दुःख न होवे
असौ वह क:-कौन
कालःकाल है। वा=और किम् = कौन
वय: अवस्था है।
अन्वयः ।
अपि तु न कोsपि
{ अर्थात् कोई नहीं
तानि=उन सबको
उपेक्ष्य = विस्मरण करके
यथा प्राप्तवर्ती=
{
यथा प्राप्त वस्तुओं में वर्तनेवाला पुरुष
सिद्धिम् =
सिद्धि अर्थात् मोक्ष
को
अवाप्नुयात् = प्राप्त होता है ||
भावार्थ ।
पुरुषों को सुख दुःखादिक द्वन्द्व किसी खास काल या अवस्था में नहीं व्यापता है, किन्तु सब अवस्थाओं में और सर्व कालों में सुख-दुःखादिक द्वन्द्व देहधारी को बराबर बने रहते हैं । इसी वार्ता को रामजी ने अध्यात्म रामायण में कहा है
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