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नवाँ प्रकरण |
मूलम् ।
पश्य भूतविकारांस्त्वं भूतमात्रान यथार्थतः । तत्क्षणाद्वन्धनिर्मुक्तः स्वरूपस्थो भविष्यसि ॥ ७ ॥ पदच्छेदः ।
पश्य, भूतविकारान् त्वम् भूतमात्रान् यथार्थतः, तत्क्षणात, बन्धनिर्मुक्तः, स्वरूपस्थः, भविष्यसि ॥
शब्दार्थ |
शब्दार्थ |
अन्वयः ।
यदा=जब
भूतों के कार्य
भूतविकारान् ={ । इन्द्रिय
आदि का
यथार्थतः वास्तव में
भूतमात्रान् =भूत मात्र
पश्य = देखेगा
1
अन्वयः ।
तत्क्षणात् = उसी समय
त्वम्=तू
| बन्धविनिर्मुक्तः= {
स्वरूपस्थः=
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बन्ध से छूटा
हुआ
{
भविष्यसि = होगा ||
अपने स्वरूप में स्थित
भावार्थ ।
हे जनक ! भूतों के विकार जो देह इन्द्रियादिक हैं, उनको यथार्थ रूप से तुम भूत-मात्र देखो, आत्म-रूप करके उनको तुम मत देखो । जब तुम ऐसे देखोगे, तब उसी क्षण में शरीरादिकों से पृथक् होकर आत्म-स्वरूप में स्थित हो जाओगे और उनका साक्षीभूत आत्मा भी तुमको करामलकवत् प्रत्यक्ष प्रतीत होने लगेगा ॥ ७ ॥
मूलम् ।
वासना एव संसार इति सर्वा विमुञ्च ताः । तत्त्यागो वासनात्यागात् स्थितिरद्य यथा तथा ॥ ८ ॥