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अन्वयः ।
कति = कितने
जन्मानि =जन्मों तक
दशवाँ प्रकरण |
शब्दार्थ |
कायेन शरीर करके
मनसा=मन करके
गिरावाणी करके
दुःखम् = दुःख देनेवाला
आयासदम्={
परिश्रम करनेवाला
अन्वयः ।
कर्म्म=कम्म
:{
+ इति = ऐसा
न कृतम् =
क्या नहीं किया
गया
तत् = वह कर्म
अद्यापि अब तो
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शब्दार्थ |
आयासदम् = 1 जावे ॥
उपराम किया
भावार्थ 1
अष्टावक्रजी तृष्णा के उपशम को पूर्व कह करके अब क्रिया के उपशम को कहते हैं
हे जनक ! शरीर, मन और इन्द्रियों को परिश्रम देनेवाले कर्मों को तुम अनेक जन्मों तक करते आए हो, और उन कर्मों के फल जन्म-मरण-रूपी चक्र में भ्रमण करते चले आए हो । अब दिन प्रति दिन अनेक दुःख उठाते आए, पर कुछ सुख न मिला, अतएव तुम कर्मों से उपरामता को प्राप्त हो । क्योंकि पुरुष उपरामता होने के, विना जीवन्मुक्ति के सुख को नहीं प्राप्त होता ॥ ८ ॥
इति श्रीअष्टावक्रगीतायां दशमं प्रकरणं समाप्तम् ।। १० ।।