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ग्यारहवाँ प्रकरण ।
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वाला कहा जाता है । संसार में सब जीवों को आपदाएँ और सम्पदाएँ प्रारब्धकर्मों के अनुसार ही प्राप्त होती हैं, ऐसे निश्चय करनेवाला जो पुरुष है, और भोगों की तृष्णा से जो रहित है, और जिसके इन्द्रियादिक वश में हैं, और किसी पदार्थ में जिसकी इच्छा नहीं है, अर्थात् जो अप्राप्त वस्तु की प्राप्ति की इच्छा नहीं करता है, और जो प्राप्त वस्तु के नष्ट होने से शोक नहीं करता, वही नित्य सुख को प्राप्त होता है || ३ |
मूलम् ।
सुखदुःखे जन्ममृत्यू देवादेवेति निश्चयी | साध्यादर्शी निरायासः कुर्वन्नपि न लिप्यते ॥ ४॥
पदच्छेदः ।
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सुखदु:खे, जन्ममृत्यू, देवात् इति निश्चयी, साध्यादर्शी, निरायासः कुर्वन् अपि न लिप्यते ॥
,
शब्दार्थ |
सुखदुःखे = सुख और दुख जन्ममृत्यू = जन्म और मरण देवात् एव दैव से ही होता है
इति = ऐसा
निश्चयी निश्चय करनेवाला साध्य कर्म को साध्यादर्शी= देखनेवाला
अन्वयः ।
अन्वयः ।
च=और निरायासः श्रमरहित
शब्दार्थ |
कुर्वन्={ कर्म को करता
हुआ
न लिप्यते = नहीं लिप्त होता है ||