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ग्यारहवां प्रकरण ।
१८१ उपादानेन सह कार्यविनाशो बाधः ॥ १॥
उपादानकारण के सहित जो कार्य का नाश है, उसका नाम बाध है ।। १ ।।
विद्यमाने उपादाने कार्यविनाशो निवृत्तिः ॥२॥
उपादान के विद्यमान होते हुए जो कार्य का नाश है, उसका नाम निवृत्ति है ।। २ ।।
विद्वान् की दृष्टि से अज्ञान-रूपी कारण के सहित कार्यरूपी जगत् का नाश हो जाता है । जगत् का नाश-रूप बाध हो जाता है; परन्तु बाधिता अनुवृत्ति करके बना रहता है, और स्वप्न-प्रपञ्च की निवृत्ति-रूप बाध जाग्रत् में हो जाता है, क्योंकि उसका उपादानकारण जो अविद्या है, वह बनी रहती है । कारण-रूपी अविद्या के विद्यमान होने पर स्वप्नरूपी कार्य का नाश हो जाता है, इसी से वह निवत्तिरूप बाध है।
अज्ञान के अनेक अंश हैं। जिस विद्वान् के अंतःकरणरूपी अंश का, जो अज्ञान का कार्य है, नाश हो जाता है, उसी को अपने आत्मा का साक्षात्कार हो जाता है, और बाकी के जीवों को नहीं होता है उनका जगत् भी बना रहता है । जैसे दश पुरुष सोये हुए अपने-अपने स्वप्नों को देखते हैं। उनमें से जिसकी निद्रा दूर हो गई है, उसी का स्वप्न प्रपंच नष्ट हो जाता है, बाकी के पुरुषों का बना रहता है । जिस पुरुष को ऐसा निश्चय हो गया है कि जगत्