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दशवाँ प्रकरण। भी अनेक पदार्थ इसी प्रकार नष्ट और उत्पन्न होते हैं। यदि सब सत्य ही होवें, तब उनका नाश कदापि न हो और नाश अवश्य होता है, इसी से सिद्ध होता है कि सब पदार्थ अनिर्वचनीय मिथ्या हैं और साखी का सत्यकार्यवाद भी असंगत है ॥ ६ ॥
मूलम् । अलमर्थन कामेन सुकृतेनापि कर्मणा । एभ्यः संसारकान्तारे न विश्रान्तमभून्मनः ॥ ७ ॥
पदच्छेदः । अलम्, अर्थेन, कामेन, सुकृतेन, अपि, कर्मणा, एभ्यः, संसारकान्तारे, न विश्रान्तम्, अभूत्, मनः ॥ शब्दार्थ । | अन्वयः ।
शब्दार्थ । अर्थेन- अर्थ करके
एभ्यः इन तीनों से कामेन कामना करके
संसार संसार-रूपी सुकृतेन कर्मणा_ / सुकृत कर्म करके
। जंगल में अपि । भी
मनः चित्त अलम्=बहुत हो चुका है न विश्रान्तम्-शान्त नहीं तथा अपि-तो भी
अभूत् होता भया ॥
भावार्थ। अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे जनक | धर्म, अर्थ और काम की इच्छा का त्याग करना ही जीवन्मुक्ति का कारण है और इनमें जो दोष हैं, उनको देखो
अन्वयः।
करके