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नवाँ प्रकरण |
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३- तीसरी शरीर की वासना अर्थात् मेरा शरीर सबसे सुन्दर और पुष्ट सदैव बना रहे ।
इन तीनों प्रकार की वासनाओं के त्याग करने से पुरुष बन्ध से छूट जाता है और उसका चित्त आत्मा में भी स्थिर हो जाता है ।
प्रश्न - समस्त वासनाओं के त्याग कर देने से शरीर की स्थिति कैसी होगी ?
उत्तर - जैसे दुग्ध पीनेवाले बालक के, और उन्मत्त अर्थात् पागल के शरीर की स्थिति प्रारब्ध कर्म से होती है, वैसे विद्वान् निर्वासनिक के शरीर की स्थिति भी प्रारब्धकर्म के वश से रहती है, परन्तु यह वासना कि शरीर की स्थिति कैसे होगी, इसका त्याग ही करना उचित है ।
प्रश्न - यदि पुरुष समग्र वासनाओं का त्याग कर देगा, तब आत्म-ज्ञान को भी वह नहीं प्राप्त होगी, क्योंकि मुमुक्षु को आत्म-ज्ञान की प्राप्ति की वासना सर्वदा बनी रहती है। और ज्ञानवान् को भी चित्त के निरोध करने की वासना बनी रहती है, फिर जीवन्मुक्त होने की उसको वासना बनी रहती है । सर्व वासनाओं का त्याग तो किसी से भी नहीं हो सकता है ।
उत्तर - 'वाल्मीकीय रामायण' में ऐसा लिखा हैवासना द्विविधा प्रोक्ता शुद्धा च मलिना तथा । मलिना जन्महेतुः स्याच्छुद्धा जन्मविनाशिनी ॥ १ ॥ दो प्रकार की वासनाएँ कही गई हैं - पहली शुद्ध