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नवाँ प्रकरण।
अन्वयः।
कृताकृते
कृत और अकृत
मूलम् । कृताकृते चा द्वन्द्वानि कदा शान्तानि कस्य वा। एवं ज्ञात्वेह निर्वेदाद्भव त्यागपरोऽवती ॥ १ ॥
पदच्छेदः । कृताकृते, च, द्वन्द्वानि, कदा, शान्तानि, कस्य, वा, एवम्, ज्ञात्वा, इह, निर्वेदात्, भव, त्यागपरः अव्रती ।। ___ शब्दार्थ । । अन्वयः ।
शब्दार्थ। वा-संशय रहित
ज्ञात्वा-जान करके च और
इह-इस संसार में द्वन्द्वानि-दुःख और सुख निर्वेदात विचार से कस्य-किसके
अवती- व्रत रहित होता कदा कब
। हुआ शान्तानि शान्त हुए हैं त्यागपरः-त्याग परायण एवम्-इस प्रकार
भब हो।
भावार्थ । अब निर्वेदाष्टक नामक नवम प्रकरण का प्रारम्भ करते हैं
पहले शिष्य ने जो गुरु के प्रति अपना अनुभव कहा था, उसकी दृढ़ता के लिये अब आठ श्लोकों करके वैराग्य के स्वरूप को दिखलाते हैं।
प्रश्न-त्याग कैसे करना चाहिए ?