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नवाँ प्रकरण |
एको यदा व्रजति कर्मपुरःसरोऽयं विश्रामवृक्षसदृशः खलु जीवलोकः । सायंसायं वासवृक्षं समेतः
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प्रातः प्रातस्तेन तेन प्रयान्ति ॥ २ ॥ जैसे सायंकाल में इधर उधर से पक्षी उड़कर एक ही वृक्ष पर रात्रि को विश्राम के लिये इकट्ठे हो जाते हैं और प्रातः काल में सब इधर उधर उड़ जाते हैं, वैसे ही इस संसार रूपी वृक्ष सब जीवकर्मों के वश्य होकर इकट्ठे हो जाते हैं, फिर प्रारब्ध कर्म के भोग के पूरे होने पर, सब अकेले अकेले होकर चले जाते हैं । कोई भी स्त्री, पुत्र, धनादि इसके साथ नहीं जाते हैं, और न साथ आते हैं, इस तरह विचार करके इनमें मोह को कदापि न करे ।
एवं 'देवी भागवत' में शुकदेवजी ने जो स्त्री के सम्बन्ध से दोष दिखाये हैं
नरस्य बन्धनार्थाय शृङ्खला स्त्री प्रकीर्तिता । लोहबद्धोऽपि मुच्येत स्त्रीबद्धो नैव मुच्यते ॥ १ ॥ पुरुष के बन्धन का हेतु स्त्री को ही बेड़ीरूप करके कहा है । एवं लोहे की बेड़ी करके बाँधा हुआ पुरुष छूट जाता है, परन्तु स्त्री के स्रेह-रूपी पाश करके बाँधा हुआ पुरुष कदापि छूट नहीं सकता है । इसी पर एक दृष्टान्त
देते हैं
एक लड़का बाल्यावस्था में संन्यासी हो गया । जब जवान हुआ, तब तीर्थयात्रा करने को जाता था । रास्ते में