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पाँचवाँ प्रकरण।
शब्दार्थ।
त्यक्तम-त्यागना
मूलम् । न ते सङ्गोऽस्ति केनापि कि शुद्धस्त्यक्तुमिच्छसि । संघातविलयं कुर्वन्नेवमेव लयं व्रज ॥ १॥
पदच्छेदः । न, ते, सङ्गः, अस्ति, केन, अपि, किम्, शुद्धः, त्यक्तुम्, इच्छसि, संघातविलयम्, कुर्वन्, एवम्, एव, लयम्, व्रज ।। अन्वयः।
शब्दार्थ । | अन्वयः । ते तेरा केन अपि-किसी के साथ भी इच्छसिचाहता है संग-संग
एवम् एव इस प्रकार ही न-नहीं अस्ति है अतः इसलिये
कुर्वन् करता हुआ शुद्धः-तू शुद्ध है
लयम्-मोक्ष को किम्-किसको
___ अज-प्राप्त हो ।
भावार्थ । चतुर्थ प्रकरण में शिष्य की परीक्षा के लिए उपदेश किया था, अब उसकी दृढ़ता के लिये चार श्लोकों करके लय का उपदेश करते हैं--- ____ अष्टावक्रजी कहते हैं कि हे शिष्य ! तू शुद्धबुद्ध-स्वरूप है, तेरा देह गेहादिकों के साथ अहंकार और ममत्व का
संघातविलयम-दहाभिमान का
विलयम्-त्याग