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भावार्थ । जिस काल में चित्त न भोगों की प्राप्ति की इच्छा करता है, और न शोकों के त्याग की इच्छा करता है, अर्थात पदार्थ के पाने पर न उसको हर्ष होता है, और न प्यारे सम्बन्धियों के नष्ट या वियोग हो जाने पर शोक होता है, किन्तु एक-रस सदा ज्यों का त्यों बना रहता है, उसी काल में वह पुरुष मोक्ष को प्राप्त हो जाता है ।। २ ।।
मूलम् । तदा बन्धो यदा चित्तं सक्तं कास्वपि दृष्टिषु । तदा मोक्षो यदा चित्तमसक्तं सर्वदृष्टिषु ॥ ३ ॥
पदच्छेदः । तदा, बन्धः, यदा, चित्तम्, सक्तम्, कासु, अपि, दृष्टिषु, तदा, मोक्षः, यदा, चित्तम्, असक्तम्, सर्वदृष्टिषु ॥ अन्वयः। शब्दार्थ । अन्वयः ।
शब्दार्थ । यदाम्जब
यदा-जब चित्तम्-मन
चित्तम्-मन कासु-किसी - दृष्टि में अर्थात्
( सब दृष्टियों में असर्वदृष्टिषु- र्थात् सब विषयों में
से किसी भी विषय में सक्तम् लगा हुआ है
असक्तम् नहीं तदान्तब बन्धः बन्ध है
तदा-तब अपि और
मोक्षः मुक्त है।
दृष्टिषु
विषय में