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अन्वयः।
दूसरा प्रकरण ।
७५ शब्दार्थ।। अन्वयः ।
शब्दार्थ । आश्चर्यम् आश्चर्य है कि
घ्नन्ति-परस्पर लड़ती हैं मयि-मुझ
च-और अनन्तम_अपार समुद्र
खेलन्ति खेलती हैं हाम्भोधा । विषे
+च और जीववीचयः जीव-रूपी तरंगें
स्वभावतः स्वभाव से उद्यन्ति-उठती हैं
प्रविशन्ति लय होती हैं ।
भावार्थ । अबाधितानुवृत्ति करके अपने में संपूर्ण व्यवहार को देखते हुए जनकजी कहते हैं
प्रश्न-बाधिता अनुवृत्ति का क्या अर्थ है ?
उत्तर-बाधित हुए पदार्थ की जो पुनः अनुवृत्ति अर्थात् प्रतीति है, उसका नाम बधितानुवृत्ति है !
__ दृष्टांत । __ जैसे एक पुरुष किसी वृक्ष के नीचे, गर्मी के दिनों में, दोपहर के समय बैठा था। उसको प्यास लगी। वह पानी की खोज करने लगा। तब उसको दूर से जल दिखाई दिया । वह उस जल के पीने के वास्ते जब गया, तब उसको जल न मिला । क्योंकि रेत में जो सूर्य की किरणें पड़ती थीं, वे ही दूर से जल रूप होकर दिखाई पड़ती थी। उसने जान लिया कि यह रेत ही मुझको भ्रम करके जल दिखाई देता था, वह तो जल है नहीं, तब वह लौट करके उसी वक्ष के नीचे आकर बैठ गया। और फिर उसको वही रेता किरण के सम्बन्ध से चमकता हुआ जल-रूप से दिखाई देने