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अन्वयः ।
तीसरा प्रकरण |
शब्दार्थ | अन्वयः ।
यस्य = जिस
महात्मनः = महात्मा का
मानसम् = मन नैराश्येअपि = मोक्ष में भी निःस्पृहम् = इच्छा-रहित है
तस्य= उस
आत्मज्ञान
तृप्तस्य
{
आत्म ज्ञान से
तृप्त हुए की
तुलना = बराबरी
८९
शब्दार्थ |
aa = किसके साथ
जायते = हो सकती है ॥
भावार्थ |
अब ज्ञानी की उत्कृष्टता को दिखाते हैं
जिस विद्वान् का मन मोक्ष की भी इच्छा से रहित एवं संसार के किसी पदार्थ के लाभ अलाभ में हर्ष और शोक को नहीं प्राप्त होता है, जिसके सब मनोरथ समाप्त हो गये हैं और अपने आत्मा के आनन्द करके ही जो तृप्त है, उस विद्वान् की किसके साथ तुलना की जावे, किन्तु किसी के भी साथ उसकी तुलना नहीं हो सकती है, क्योंकि वह अतुल्य है ।। १२ ।।
मूलम् ।
स्वभावादेव जानानो दृश्यमेतन्न किञ्चन । इदं ग्राह्यमिदं त्याज्यं स किं पश्यति धीरधीः ॥ १३ ॥ पदच्छेदः ।
स्वभावात्, एव, जानानः, दृश्यम् एतत् न, किंञ्चन, इदम्, ग्राह्यम्, त्याज्यम्, सः, किम्, पश्यति, धीरधीः ॥