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अनुयोगचन्द्रिका टीका सू० १४ द्रव्याश्यकस्वरूपनिरूपणम्
छाया-नेगमस्य खलु एकः अनुः युक्त आगमत एकं दावश्यकम्, द्वावनुपयुक्ती आगमतो दे द्रावश्यके, त्रयःअनुपयुक्ता आगमतः त्रीणि द्रव्यावश्यकानि । एवं यावन्तः अनुपयुक्ता आगमतः तावन्ति द्रव्यावःयकानि । एवमेव व्यवहारस्थापि। संग्रहस्य खलु एका वा अनेके वा अनुपयुक्तो वा अनुपयुक्ता वा द्रव्यावश्यकं द्रावकानि वा, स एकं द्रव्यावर कम् । ऋजुसूत्रस्य एकः अनुपयुक्त
अब सूत्रकार नयों के भेद से गायक के भेद कहते हैं:--- "नेगमस्स णं एगों" इत्यादि।।मू० १५।।
शब्दाथे-(नेगमम्स णं) नंगमनय की विवक्षा से (एगो) एक (अण्वउत्तो) अनुपयुक्त आत्मा (आगमओ) आगम को आश्रित करके (एग दवाव-सय) एक द्रव्यावश्यक है। (दोणि अणुवउत्ता आगमओ दोष्णि दवावासायाई) दो अनुपयुक्त आत्माएं आगम की अपेक्षा लेकर दो द्र यावश्यक हैं। तिष्णि अणुवउत्ता आगमओ तिष्णि दवावस्मयाई) तीन अनुपयुक्त आत्माएं आगम की अपेक्षा लेकर तीन द्रवश्यक है। (एवं जावड्या अणुवउता आगम भो तारइगई दवावस्सयाई) इसी तरह जितनी और भी आत्माएं अनुपयुक्त हैं उतने ही आर.म की अपेक्षा लेकर व्यावश्क हैं। (अमेव ववहारस वि) इसी ताह से व्यवहानयकी विवक्षा से जानना चाहिये। (मंहस्स णं एगो वा अणेगो वा अणुवउत्तो श अगुवउत्ता वा दयारम्सयं द वायम्सयाणि वा से एगे दवावस्मए) संग्रहनय को विवक्षा से एक, अनुपयुक्त आत्मा एक द्रव्यावश्यक नथा अनेक द्रव्यावश्यक हैं' ऐसा जो कथन नंगमनय और व्यवहार
હવે સૂત્રકાર નાના ભેદની અપિલ એ દ્રવ્યાવશ્યકના ભેદનું કથન કરે છે, "नेगमम्म णं एगा" त्यादि--
था- (नेगमस्स णं) म नयनी टिणे (२॥२ ५२वामां गाये तो (एगो) से (अणुउनो) अनुपयु! kit (आगमओ) मने माश्रित प्रशन (एगं दवावस्मयं) ४ द्रव्यावश्य: . (दोणि अणुवउत्ता आगमओ दोणि दवावासयाई) मे अनुपयुत स! भा२सागमनी अपेक्षा मे द्रव्यावस्य: छ. (तिणि अणुवउत्ता आगमओ तिणि व्यावम्याइ) वा अनुपयु51 गाभास भागमानी अपेक्षा ७ द्रव्या१२५५ छे, (एवं जावइया अणुवउत्ना आगमओं तावइयाई दवावस्सयाई) ०४ मा ulla 2सा मामा अनुपयुन छ. मेटसा मागभनी अपेक्षा यावश्य: छे. (एवमेव वचहारम्स वि) ०यबा२ नयनी દૃષ્ટિએ વિચારવામાં આવે તો પા આ વિયને અનુલક્ષીને ઉપર મુજબનું જ કથન समा. (मंगहरस णं एगो वा अणेगा वा अणुवउत्ता वा अणुवउत्ता वा दव्वावासय दवावायाण वा से एगे दवावस्मए) सब नयन माघारे पियार ४२. વામાં આવે તે “એક અનુપયુકત આત્મા અગમની અદાએ એક દ્રવ્યાવશ્યક