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अनुयोगद्वारले नातेन च त्रयो भङ्गाः, इत्येवमसंयोगपक्षे पर मना भवन्ति । संयोगपक्षे तु पदअयस्यास्य त्रयो द्विकसंयोगाः । एककस्मिस्तु द्विक संयोगे एकवचन-पहुवचनाम्या चतुर्भनयाः सदाबाद् त्रियपि द्विकय गेषु द्वादश भनाः सम्पयन्ते ।१२। त्रिकयोगस्त्वत्र एक एच। तत्र च एकवचनबहुवचनाभ्यामष्टौ भङ्गा भवन्ति । मवेऽप्यमी पविशतिः। २६। भङ्गानां स्थापना चैवम् -
। षड्विंशतिभङ्गानां कोष्ठकमिदम् । असंयोगे भगाः द्विकसंयोगे प्रथमा चतुभङ्गी१ | त्रिकसंयोगे भगाः ८ *आनुपूर्वी १ | आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी-अवक्तव्यकः १ अनानुपूर्वी२ | आनुपूर्वी-अनानुद्यः२ । आनुपूर्वी-अनानुपूर्वी-अवक्तव्यकाः२ अवक्तव्यकः३| आनुपूर्व्यः-अनानुपूर्वी ३ | आनुपूर्वी-अनानुपूर्व्यः-अवक्तव्यकः३ तीन भंग बनते हैं और जो आनुपूर्वी आदि तीन पद बहुवचनान्त हैं उनसे भी ३ भंग बनते हैं। इस प्रकार असंयोग पक्षमें ये छह ६ भंग हो जाते हैं। और संयोग पक्ष में इन तीन पदों के विसंयोगी भंग ३ होते हैं। इन में एक एक भा में दो दो का मंयोग होने पर एकवचन
और बहुवचन को लेकर चार २ भंग हो जाते हैं इस प्रकार तीन भंग के द्विक संयोगी भंग चार २ होने से ये १२ भंग बन जाते हैं। तथा त्रिक संयोग में एक वचन और यहुवचन को लेकर ८ भंग पनते है। इस प्रकार सवभंग मिलकर २६ भंग होते हैं। इन भंगोका क्रम इस प्रकार से है
भानुपूर्वी १, अनानुपूर्वी २, अवतव्यक, ये तीन भंग एक बच. नान्त हैं। आनुपूर्वियां१, अनानुर्वियार; और अनेक अवक्तव्यकर, ये ३ भंग बहुवचनान्त है, ऐसे असंयोगी भंग हुए ६ । दो के संयोग से तीनचतुर्भगियां बनती हैं, उनमें प्रथम चतुर्भगी इस प्रकार से बनती है-आनुपूर्वी अनानुपूर्वी १, आनुपूर्वी अनानुर्वियां २, બાંગા બને છે અને જે આનુપૂર્વી આદિના ત્રણ પદે બહુવચનાન્ત છે તેમના પણ ત્રણ ભાંગાઓ બને છે. આ રીતે કુલ ૬ અસગી ભાંગાઓ मन छे. मात्र पढाना (भानुनी, मनामी भने मत०५४11) . સગી ભાંગ ત્રણ થાય છે પ્રત્યેક ભાંગામાં બબેને સંગ થવાથી એક વચન
અને બહુવચનની અપેક્ષાએ પ્રત્યેક પદની સાથે ચાર-ચાર લાંગા બને છે. આ રીતે ત્રણે એની સાથે કુલ ૧૨ દ્વિસંગી ભાંગા બને છે. વિકાસ યોગી पुस ८inसन 2. सारी मया भजीन +12+८=
२i w. मा २६ लामानम मा प्रभार समनाया-(1) भानुकी', (२) भनानु५वी', (3) सपत०५४, again वयनान्त छे.
(1) भानु५वीसी, (२) मनानुनीमा (3) भने४ अपातयी, ત્ર સાંગા બહુવચનાન્ત છે. એવી રીતે અસંગી ૪ માં થયા ૬ * एकवचनामयः,