Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 779
________________ ७६६ अनुयोगद्वार 1 (करे से णामे उवसमियखइखओवस मियनिष्फण्जे १) हे भवन्त औपशमिक क्षायिक और क्षायोपशमिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव कैसा है ? उत्तर- ( उवसमिपखझ्यखओवस मियनिष्कण्णे ) औपशमिक क्षायिक और क्षायोपशमिक इन तीन भावों से निष्पन्न हुआ-सान्वि पातिकभाव इसप्रकार से है - ( उवसंता कसाया खइयं सम्मन्तं खओब समियाई इंदियाई) उपशमित हुई कषायें औपशमिक भाव है, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक भावरूप है और इन्द्रियां क्षायोपशमिक भाव है। (एस से णामे उवसमियखइयख ओवसमियनिष्फण्णे) इस प्रकार यह औपश मिक क्षायिक क्षायोपशमिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव है, ( कयरे से णामे उवसमिय खइयपारिणामित्र freeoणे) हे भदन्त ! औपशमिक क्षायिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव कैसा है ? उत्तर- (उन समिघखइयपारिणामियनिष्कण्णे) औपशमिक क्षायिक और पारिणामिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्नि: पातिक भाव इसप्रकार से है । ( उवसंता कसाया, खयं सम्मत पारि प्रश्न- ( कयरे से णामे उस मियखइयख ओस मियनिष्कण्णे १) हे भगवन् ! ઔપશમિક, ક્ષાયિક અને ક્ષાયેાપશમિક, આ ત્રણેના સચાગથી બનતા સાતમાં સાન્નિપાતિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે? Gत्तर- (उवमिय खइयखओवसमियनिष्कण्णे) भोपशमि, क्षायिक भने ક્ષાયેાપશમિક, આ ત્રણ ભાવેાના સચૈાગથી બનતા સાતમાં સાન્નિપાતિક भावनुं स्व३५ मा अडानु छे - ( उवसंता कसाया, खइथं सम्मत्तं, खओवस मियाई इंदिया इं) उपशमित थयेला उषायो औोपशमि लाव ३५ छे, क्षायिक સમ્યક્ત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે અને ઇન્દ્રિયા ક્ષચાપશમિક ભાવ રૂપ છે. (एस से णामे व मियखइ यख ओवस्वमियनिष्फण्णे?) या अमरनो भोषथः મિક ક્ષાયિક ક્ષાયેાપથમિક નામના સાન્નિપાતિક ભાવ હોય છે. प्रश्न- (कयरे से णामे उबवमिय स्वइयपारिणामियनिष्कण्णे?) हे भगवन् ! ઔપશમિક, જ્ઞાયિક અને પારિણામિક, આ ત્રણ ભાવાના સમૈગથી બનતા ખ!ઠમાં સાન્નિપાતિક ભાવનુ સ્વરૂપ કેવુ` છે ? उत्त२-(उवसमियखइयपारिणामियनिष्कण्णे ) औोपशमिठ, क्षायिष्ठ समुने પારિણામિક, આ ત્રણ ભાવાના સંચેગથી બનતા સાન્નિપાતિક ભાવ भारना है - (उबसंता कसाया, खइयं सम्मतं, पारिणामिए जीवे) उपसमित

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