Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 825
________________ भनुयोगद्वारस्ये भवति तत्र ‘अविघुष्ट' नामा गुगो बोध्यः।।५।। मधुरम्-मधुमत्त कोकिलकल काफकीरत यत्र गाने गायकस्य मधुरः सारो भवति तत्र 'मधुरघर'-नाना गुणः॥६॥ समम्-तालवंशस्वरादिसमनुगतो यत्र स्वरो भवति, तत्र 'सम'-नामको गुणः।।७॥ मुगलितम्-स्वरघोलनाप्रकारेण शुद्धातिशयेन शब्दस्पर्शनेन श्रोत्रन्द्रियस्य मुखो. त्पादनाद् वा, ललतीव यत् तत् मुललितम्-सुकुमारमित्यर्थः, अयं गेयस्याष्टमो गुणः॥८॥ एते अष्ट गुणा गीतस्य भवन्ति । एतद्विरहितं गीतं तु गोतमेव न भगति । तत्तु गीताभासं विज्ञेयम् ॥ इतोऽन्येऽपि गीतगुणाः सन्ति, तान प्रदर्शयितुमाह-'उरकंठ' इत्यादि। च-पुनः उरकण्ठशिरःप्रशस्तम्-उरकण्ठसिरसा द्वन्द्वः, ततः प्रशस्तेन सह तृतीयातत्पुरुषः। एवं च-उरः प्रशस्तं कण्ठपशस्तं शिरा प्रशस्तमिति शुद्धमिति पदत्रयं लभ्यते । तत्र-उरसि यदा विशालः स्वरो भवति, जो गान स्वर विहीन होता है, वह 'विघुष्ट' गान कहलाता है ! जिस गान में विघुष्ट नहीं होता वहां, 'अविघुर' नाम का यह गुण होता है। वसन्त में मत्त कोकिलाकी कलकाकली के जैसा जिस गान में गायक का स्वर मधुर होता है, उस गान में 'मधुर' स्वर नाम का गुण होता है। जिस गान में ताल, वंश-स्वर आदि से समनुगत स्वर होता है उस गान में 'सम' नामका गुण होता है। स्वर घोलना प्रकार से शुद्धाति. श्य से अथवा शब्दस्पर्शन से जो श्रोत्रेन्द्रिय को सुखोत्पादक होता है और इसी कारण जो विशेष प्रिय लगता है वह सुललित है-यह गान का अष्टमगुण है। इस प्रकार ये गीत के ८ गुण हैं । इन गुणों से रहित मा गीत (गान) गीत ही नहीं कहलाता है। वह तो गीताभास है। इन गुणों से अन्य और भी गीत के गुग हैं, जो इस प्रकार से हैं (उरकंठसिरपसस्थं) उरःप्रशस्त कंठप्रशस्त और शिरःप्रशस्त, गान का હોય ત્યાં “અવિઘુષ્ટ' નામક ગુણ કહેવાય છે. વસન્તમાં મત્ત કોયલની કલકાકલીની જેમ જે ગીતમાં ગાયકને સ્વર મધુર હોય છે, તે ગીતમાં મધુર સ્વર નામે ગુણ હોય છે જે ગીતમાં તાલ, વંશ, સ્વર વગેરેથી સમગત સ્વર હોય છે તે ગીતમાં “સમ” નામક ગુણ હોય છે. સ્વરલના પ્રકારથી, શ્રદ્ધાતિશયથી અથવા શબ્દ સ્પર્શનથી જે શ્રોત્રેન્દ્રિયને સુખ આપે છે અને એથી જે વિશેષ પ્રિય લાગે છે તે સુલલિત છે આ ગીતને આઠ ગુણ છે આ પ્રમાણે આ ગીતના આઠ ગુણ છે. આ ગુણેથી હીન ગીત ગીત કહી શકાય જ નહીં તે તે ગીતાભાસ છે. આ ગુણેની સાથે સાથે બીજા પણ यातना शुधे छ मा प्रभारी है-(उरकंठसिरपपत्य) 6:प्रशस्त, કંઠપ્રશસ્ત અને શિરપ્રશસ્ત ગીતને વિશાળ સવર જ્યારે વક્ષસ્થળમાં પરિવ

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