Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 851
________________ ९३८ अनुयोगद्वारसूत्रे शीया-स्त्री, 'इशमा षोडशबाविकी' इत्यभिधानात् , शन्दोदाम-शदउद्दामा प्रचुगे र तत्-किङ्किणी मुखरम् 'उदाम' शब्दम्ग निपात आर्ष वात् ,अत एव यूना=रुणानां हृदयो माइक भवलत्मरप्रजटी. व हृदयोन्मनता विधायकं स्वकीयं मेखलादाम अटिसूत्रं मधु विलापललिधुरैः कामिजनहृदया. हादकतया माधुर्यमुरगतैः येलासः सकामचेष्टाविशेौ. गुललितम् अतिशयमनोहारि यथास्यात्तथा दर्शयति । शृङ्गारप्रधानचेष्टापतिपादनादयं शृङ्गारो रसः , का, गति का, दृष्टि का, हास्य का, षोली का अनुकरण करती है, वह 'लीला' है। क्रीडा करना इसका नाम रमण है । इस शृङ्गार रस के मंडन, विलास , विबोक, हास्य, लोला और रमण ये चिह्न हैं। अब सूत्रकार (सिंगारो रसो जहा) यह शृङ्गार रस जिस प्रकार से जाना जाता है, उस प्रकार को इस गाथा द्वारा प्रकट करते हैं-(सामो) "श्यामा षोडशवार्षिकी" इस कथनानुसार कोई षोडशवर्षदेशीयासोलह वर्ष की अवस्था वाली तरुण वयस्का-स्त्री (मदुद्दाम) क्षुद्रघंटिकाओं के शब्द से मुखरित अतएव (जुवाणाणं) युवा पुरुषों के (हियउम्मादणकरं) हृदय को प्रबलस्मरकी पीड़ा उत्पन्न करने से उन्मत्त करने वाले ऐसे (मेहलादाम ) अपने कटिसूत्र को (महुरविलाससुललियं) कामिजनों के हृदय को आहादक होने के कारण मधुर लगने पाले विलासों-सकाम चेष्टा विशेषों-से अतिशय मनोहारी जैसे यह होता है उस प्रकार से (दाएती) दिखलाते है इस शृंगाररस में श्रृंगारप्रधान चेष्टाओं का प्रतिपादन होता है इसलिये इसे 'शृंगाररस' કીડા કરવી તે રમણ કહેવાય છે મંડન, વિલાસ, વિબેક, હાસ્ય, લીલા તેમજ રમણ આ સર્વે શુંગાર રસના ચિહ્નો છે. व सत्र (सिंगारो रसो जहा) ॥२२ नाथा gru तनु मा ॥ १ ४थन रे छे. (सामा) " श्यामा षोडशवार्षिकी " मा अयन भुराम । सो नी भयावामी त२५१५२४-1 (सदुद्दाम) क्षुद्रटिसाथी भुमारित तथी (जुवाणाणं) युवा (हियउम्मादणकर) याने प्र. सतम भ२ पा७.थी युक्त रीने जन्मत्त ४२नार (मेहला दाम) पाताना टि. सूत्रने (महरविलाससुललिय) भुना हुयने माह ६४ 3.41 ४१ मधुर લાગે તેવા વિલાસો-સકામ ચેષ્ટા વિશેથી અતિશય મહારી લાગે તેમ (दाएती) तर मताव छ. मा ॥२ २४ ॥२ प्रधान येण्यासानु प्रतिपादन या५ छ मेथी मान ॥२ २ मा भाव 2. (धी भीम

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