Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 838
________________ मागोगादा का सूत्र १६८ अष्टनामनिरूपणम् न्युट् । संपदापने-संमदाने-दानस्य कर्मणा योऽमितस्तस्मिन् 'के भ्याम् भ्या! इति चतुर्थी विभक्ति भाति । अपादाने-अपायावधिभूते 'ङसि भ्याम् भ्यस्' इति पञ्चमी विभक्ति भवति । स्वस्वामिवाचने-स्वम्-भृत्यादि, स्वामी-राजादिस्तयों बांचने-तत्सम्बन्धपतिपादने 'डम ओम् आम्' इति षष्ठी विभक्ति मवति । सनि पानार्थे वाच्ये 'कि ओस् सप्' इति सप्तमी विभक्ति भवति। तथा-अष्टमीसंबोधनविभक्तिः आमन्त्रणी अभिमुखी करणार्या भवति । इत्थं सामान्येनोवा सम्मति सोदाहरणमाह-निर्देशे प्रथमा, विभक्ति भवति, यथा-सः अयम् अहं वेति। उपदेशे पुनः द्वितीया विभक्ति भवति । यथा-'भण कुरु इदं वा तवेति इथं प्रत्यक्ष यत् श्रुतं तद् भण, इदं प्रत्यक्ष कार्य कुरु, तत्-परोक्ष वा यत् श्रुतं तद् करण इन दोनों में होते हैं । इस प्रकार करोति इति करणः क्रियतेऽने नेति करणम् "यहां दोनो जगह ल्युट प्रत्यय हुआ है। दान रूप क्रिया के कर्म का जिसके साथ संबन्धकर्ता को इष्ट हो उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है । अपाय की अवधिभूत पदार्थ का नाम अपादान है। इसमें पंचमी विभक्ति होती है। स्वस्वामी संबंध में सेव्य सेवक आदि भाव लिया गया है । स्व का तात्पर्य सेवक, भृत्यादि से है और स्वामी का सेव्य राजादि से । सविधान और आमन्त्रणी इन शब्दों का अर्थ स्पष्ट है। इस प्रकार सामान्य से कह कर अब सूत्रकार इस अष्ट नाम को उदाहरण देकर समझाते है-(तत्य निहेमे पढमा विभत्ती) निर्देश में प्रथमा विभक्ति होती है-जैसे (सो इमो अहं वत्ति) वह यह अथवा में। (विहया पुण उवएसे) उपदेश में द्वितीयाविभक्ति होती है जैसे-(भण कुणसु इमं व तं वत्ति) जो तुमने प्रत्यक्ष में सुना है, उसे कहो, इस सामने के काम को करो, जो परोक्ष में तुमने सुना है उसे कहो अथवा उस अनेन इति करणम्' मही' बन्ने स्थाने युट प्रत्यय ये छे. हान३५ ક્રિયાના કર્મને જેની સાથે સંબંધ કર્તાને ઈષ્ટ હોય તેમાં ચતુર્થી વિભકિત થાય છે. અપાય (જુદા થવું)ની અવધિભૂત પદાર્થનું નામ અપાદાન છે આમાં પંચમી વિભકિત થાય છે સ્વ સ્વામી સંબંધમાં સેવ્ય સેવક વગેરે ભાવ ગ્રહણ કરવામાં આવે છે ત્વનું તાત્પર્ય સેવક નૃત્ય વગેરેથી છે અને સ્વામીનું સેવ્ય રાજા વગેરેથી સન્નિધાન અને આમન્ત્રણ આ સંબંધન શબ્દનો અર્થ સ્પષ્ટ છે. આ પ્રમાણે સૂત્રકાર સામાન્ય રૂપમાં ઉલેખ કરીને હવે આ અષ્ટनामन सोही २९ समनवे छ. (तत्थ निदेसे पदमा विभत्ति) निशा प्रथम Gिalsa डाय छे. रेभ (सो इमो अहं वचि) 'ते,'' ' ' (विइया पुण सवएसे) Gपहेशमा भील dिalsa य छे. २ (भण कुणस इम व तबत्ति) २ तमे प्रत्यक्षमा सन्यु छे, तर ४, मा सामेनु म म. १०४

Loading...

Page Navigation
1 ... 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861