Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 830
________________ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६७ गीते हेयोपादेयनिरूपणम् उपनीतम्-उपनपनिगमनयुक्तम्-उपसंहारयुक्तमित्ययः५, सोपचारम्-लिष्टविरुद्धलज्जास्पदार्थावाचकं सानुपासं वा गीतम् ६, मितम्-अतिवचनविस्तररहितं, संक्षिप्ताक्षरमित्यर्थः७, तथा-मधुरम्-माधुर्यगुणसमन्वितं-सुश्रव्यशब्दार्थयुक्तमित्यर्थः८, एतादृशं यत् गीतं तदेव गानयोग्यं भवति । अथ यदुक्तं त्रीणि वृत्तानीति तान्याह-'समं' इत्यादि । यत्र वृत्ते चतुर्वपि चरणेषु समानि अक्षराणि भवन्ति, तद् वृत्तं समम् । यत्र प्रथम तृतीययोद्वितीयचतुर्थयोश्च चरणयोः सामान्याक्षराणि भवन्ति तदर्धसमम् । तथा-यत्र=वृत्ते सर्वत्र-चतुर्षपि चरणेषु अक्षराण गीत को प्रासाद गुण युक्त होना चाहिये । उपमा आदि अलंकारों से जो गीत सजा हुआ होता है वह गीत 'अलंकृत गुण वाला कहलाता है जो गीत उपसंहार से युक्त हो जाता है वह उपनीत गुण युक्त गीत माना जाता है । जो गीत क्लिष्ट विरुद्ध एवं लज्जास्पद पदार्थ का वाचक नहीं होता अथवा अनुप्रास युक्त होता है वह 'सोपचार' गीत कहलाता है । जिस गीत में वचनों का विस्तार अधिक नहीं होता है अर्थात् जो .गीत संक्षिप्त अक्षरों वाला होता है, वह 'मित' गुण वाला गान है। जो गान सुश्राव्य शब्द और अर्थ वाला होता, है वह मधुर गुण युक्त गान कह लाता है। ऐसा जो गान - होता है वही गान योग्य होता है। गीत की तीन भणितियां इस प्रकार से हैं-(समं अद्धसमं चेव सम्वत्थविसमं च यं, तिणि वित्तपयाराई चउत्थं नोवलब्भह) जिस वृत्त में चारों चरणों में समान अक्षर होते है, वह 'समवृत्त' है। जिस वृत्त में प्रथम तृतीय पादों में और दि. तीय चतुर्थ पादों में समान अक्षर होते हैं वह अर्द्ध समवृत्त है। तथा ઉપમા વગેરે અલંકાથી જે ગીત અલંકૃત હોય છે તે ગીત અલંકૃત ગુણવાળું કહેવાય છે. જે ગીત ઉપસંહારથી યુક્ત હોય છે તે ઉપનીત ગુણ યુક્ત ગીત કહેવાય છે જે ગીત ફિલષ્ટ, વિરૂદ્ધ, અને લજજાસ્પદ પદાર્થ વાચક ન હોય અને અનુપ્રાસ યુક્ત હોય છે તે સોપચાર ગીત કહેવાય છે. જે ગીતમાં વચનવિસ્તાર વધારે ન હોય એટલે કે જે ગીત સંક્ષિપ્ત અક્ષરે યુક્ત હોય छ, ते भित' अश्युत भात छ. २ का सुश्राव्य शम अने अथवा હોય છે તે મધુર ગુણ યુક્ત ગીત કહેવાય છે. એવું જે ગીત હોય છે તેજ जीत पाय डाय के गीतनी र समितीम। ॥ प्रभार छ-(सम अद्धसम चेव सम्वत्थ विसमं च यं, तिण्णि विसपयाराई चउत्थं नोवलब्भइ) જે વૃત્તમાં ચારે ચરણોમાં સમ અક્ષરે હોય છે તે “સમવૃત છે જે વૃતમાં પ્રથમ-તૃતીય પાદમાં અને દ્વિતીય ચતુર્થ પામાં સમાન અક્ષર હોય છે તે अ० १०३

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