Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 831
________________ मपोगदारी वैपायं तवृत्तं विषमम् । एते त्रय एव वृत्तप्रकारा भवन्ति, चतुर्ये वृत्तं तु नोपलभ्यते। बथा-भणितयः भाषाः संस्कृताः प्राकृताश्च द्विविधा द्विपकारका एव भाख्याता:= उक्ताः। एता ऋषिभाषिता अतएव प्रशस्ता भाषा बोध्याः। अत एव एताः स्वरमण्डले षड्जादि स्वरसमूहे गीयन्ते । अत्र गीतविचारः प्रस्तुतः, अत: किोशी स्त्री कथं गायति ?' इति पृच्छति-'केसी गायइ' इत्यादिना-कीदृशी त्री मधुरं मधुरस्वरेण गायति ? च-पुनः कीदृशी स्त्री खरं-खरस्वरेण रूक्षं सक्षस्वरेण च गायति ? कीदृशी स्त्री चतुरं-चातुर्येण-गीतशास्त्रोक्तयथाविधि जिस वृत्त में चारों ही पादों में अक्षरों की विषमता रहती है, वह 'विषमवृत्त' है। ये तीन वृत्तों के प्रकार हैं और चतुर्थ प्रकार वृत्त का कोई नहीं है । (सक्कया पापया चेव दुहा भणिईओ आहिया। सरमंड. लंमि गिज्जंते पसत्था इसिभासिया) तथा-भणिति-भाषा-संस्कृत और प्राकृत के भेद से दो प्रकार की ही कही गई है। ये ऋषिजनों द्वारा भाषित हुई हैं, इसलिये इन्हें प्रशस्त भाषा जानना चाहिये । प्रशस्त भाषा होने के कारण ही ये दोनों प्रकार की भाषाएँ षड्ज आदि स्वर समूह में गाई जाती हैं। यहां पर गीत का विचार चल रहा है इसलिये पूछा जा रहा है कि-कैसी स्त्री किस प्रकार से गाती है ? इसी बात को सूत्रकार-अप प्रकट कर रहें हैं-(केसी गायह महुरं) कैसी स्त्री गीत को मधुर स्वर से गाती है ? (केसी गाय खरं च रुक्खं च) कैसी स्त्री गीत को खर स्वर से गाती है ? कैसी स्त्री गीत को रूक्षस्वर से गाती है? (केसी गायइ चउरं ? केसी य विलंबियं दुतं केसी ?) कैसी स्त्री चतुराई અદ્ધ-સમવૃત્ત” છે તેમજ જે વૃત્તમાં ચારેચાર ચરણમાં અક્ષરાની વિષમતા રહે છે તે “વિષમવૃત્ત' છે આ ત્રણે વૃત્તોના પ્રકાર છે એ શિવાય वृत्तन था। प्रा२ नथी. (सक्कया पायया चेव दुहा भणिईओ आहिया। सरमडलमि गिज्जवे पसत्था इसिभासिया) ar शिति-भाषा-सस्कृत અને પ્રાકૃતના ભેદથી બે પ્રકાર ની કહેવામાં આવી છે એ અષિઓ વડે ભાષિત થયેલી છે એથી તેને પ્રશસ્ત ભાષા જાણવી જોઈએ એ પ્રશસ્ત ભાષા હોવા બદલ જ આ બને જાતની ભાષાએ પજ વગેરે સ્વર સમૂહમાં ગવાય છેઅહીં ગીત સંબંધી પ્રકરણ ચાલી રહ્યું છે એથી આ પ્રમાણે પછવામાં આવી રહ્યું છે કે કઈ સ્ત્રી કેવી રીતે ગાય છે? એજ વાતને સૂત્ર१२ ३ ४८ ४३ छे. (केसी गायइ महुर) व श्री मधुर स्वरे गीत आय २१ (केसी गायइ खरच रुक्खं च) श्री गीतने १२ २१२वी गाय छ । श्री क्षया गीत आय छ १ (केसी गायइ चउर? केसी विलंबिय

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