Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 827
________________ ૮૪ अनुयोगद्वारके रक्षेपः- मुरजक/स्वादीनां गीतोपकारकाणां ध्वनिः, नर्तकीपद प्रक्षेपलक्षणो वा समौ वालप्रत्युत्क्षेप यत्र तत् । तथा सप्तस्वरसीभरम् - सप्त स्वगः सीभरन्ति = अक्षरादिभिः सह समा यत्र भवन्ति तत् । एवं विधं यद् गीतं गीयते तदेव सुगीतं भवति । इत्थं च उरःकण्ठ शिरः प्रशस्तस्वादयोऽपि गीतगुणा बोध्याः 'सप्तस्वरसीमरम्' इत्युक्तं, तत्र ये सप्त स्वरास्ते क्वचित् एवमुक्ताः 1 " अक्वरसमं पदसमं तालसमं च लयसमं गहसमं नीससिओसलियसमं संचारसमं सरा सत्त ॥ 6 छाया - अक्षरसमं पदसमं तालसमं च लयसमं ब्रहममम् । निःश्वसितोच्छ्वसितसमं सञ्चारसमं स्वराः सप्त | इति ॥ अयमर्थः - अक्षरसनम् - यत्र दीर्घेऽक्षरे दीर्घो गीतस्वरः क्रियते, हस्वे हवा, प्लुते प्लुतः, सानुनासिके सानुनासिकः, तदक्षरसमम् ॥१॥ पदसमम् - यत् पदं = गीतमें पदों की रचना विशिष्ट होती है, वह 'पबद्ध ' गान है । (समतालपड़ खेत्रं) जिस गान में ताल हस्ताल से उत्पन्न हुआ शब्द और प्रत्यु-मृदंग कांस्य आदि का जो कि गीत के उपकारक होते है arit safar अथवा नर्तकीजन का पादप्रक्षेप ये दोनों जिस में एक साथ होते है वह समताल प्रत्युत्क्षेप गान है । यह गान का गुण है । (सत्तहमरसी भरं गीयं) जिस गान में सात स्वर अक्षरों के साथ समान होते हैं वह गान रसभर ' कहलाता है। इस प्रकार का जो गाना गाया जाता है वही सुगीत ( गीत ) कहलाता है । सप्तस्वर सीभर में जो सात स्वर कहे गये हैं, वे कहीं२ पर इस प्रकार से कहे गये हैं- अक्षरसम१, पदसम२, तालसम३, लयसम४, ग्रहसम५, निःश्वसितोच्छ्रवसितसम६, और संचारसम ७, जिस गान में दीर्घ अक्षर पर दीर्घ स्वर, ह्रस्व अक्षर पर ह्रस्व स्वर प्लुत अक्षर पर प्लुत स्वर और सानुनासिक जद्ध' गीत छे. (समताल पडुक् चैवं ) ने गीतमां तास - इस्तता थी उत्पन्न થયેલ શબ્દ અને પ્રત્યુત્સેપ-મૃદંગ કાંસ્ય વગેરેના કે જે ગીતના માટે ઉપકારક ડાય છે તેમના નેિ અથવા નર્તકીઓનુ પાદપ્રક્ષેપણ એ બન્ને જેમાં એકી સાથે હાય છે તે સમતાલ પ્રત્યુત્શેષ ગીત છે. આ ગીતના ગુણ છે. ( सत्तर सरसी भरं गीयं ) ने गीतमां सातस्वर अक्षरानी साथै समान हाय छे તે ગીત ‘સપ્તસ્વર સીભર' કહેવાય છે. આ પ્રમાણે જે ગીત ગવાય છે તે सुगीत ( गीत ) ठडेवाय छे સપ્તસ્વર : સીભર’માં જે સાત સ્વરે કહેલા છે તેઓ કોઈક સ્થાને આ પ્રમાણે પણ કહેવામાં આવ્યા છે-૧ અક્ષરસમ, ૨ पढसम, 3 ताससम, ४ सयसम, प असम, ६ निःश्वसितसतसम અને ૭ સંચારસમ, જે ગીતમાં દીર્ઘ અક્ષર પર દીઘ્ર સ્વર, હ્રસ્વઅક્ષર પર હસ્વસ્વર, દ્યુત અક્ષર પર શ્રુતસ્વર અને સાનુનાસિક પર સાનુનાસિક સ્વર 6

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