Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 791
________________ अनुयोगबारसूत्रे पारिणामिकनिष्पन्नम्-औदयिकमिति मानुष्यं, क्षायिकं सम्यक्त्वं, क्षायोपशमिकानि इन्द्रियाणि, पारिणामिको जीवः। एतत् खलु तन्नाम औदयिकक्षायिक क्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्। कतरत् तन्नाम औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकनिष्पन्नम् !, औपशमिकक्षायिकक्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्उपशान्ताः कषायाः, क्षायिकं सम्यक्त्वं, क्षायोपशमिकानि इन्द्रियाणि, पारिणा (उदइय खइयस्वओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक-और पारिणामिक इन चार भावो के संयोग से निष्पन्न-हुआ भंग ऐसा है-(उदइएत्ति मणुस्से खइयं सम्मतं, खओवसमियाई इंदियाई, पारिणामिए जीवे) मनुष्यगति यह औदयिक भावरूप है, क्षायिक सम्यक्त्व यह क्षायिक भावरूप है, इंद्रियां ये क्षायोपशमिक भावरूप है और जीवत्व यह पारिणामिक भावरूप है । (एस गं से नामे उदय खहयखोवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) इस प्रकार यह औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इनचार भावों से निष्पन्न हुआ इस नामका चतुर्थ भंग है । (कयरे से नामे उवसमिय खडयखओवसमियपारिणामियनिफण्णे ?) हे भदन्त | औपशमिक' क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ पांचवां भंग कैसा है ? उत्तर-( उवसमियखइयखभोवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) उत्तर-(उदइयखइयखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) मी4ि8, 4, ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવના સાગથી બનતા સાન્નિપાતિક ભાવનું સ્વરૂપ આ પ્રકારનું છે, એટલે કે ચે ભંગ આ પ્રકારને छ-(उदइए त्ति मणुस्से, खइयं सम्मत्तं, खोवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे) मा यथा प्रा२ना सान्निपाति: Iqwi मनुष्याति मोहयि भाव રૂપ છે, ક્ષાયિક સમ્યકત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂ૫ છે, ઈન્દ્રિય ક્ષાયોપશમિક ભાવ३५ छ भने ५ परिणाम मा ३५ छ. (एस णं से णामे उदइयत्रइयखभोवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) ॥ ५२नु मौयि४, यि, क्षाया५शમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવના સાગથી બનતા “ઔદયિક ક્ષાયોપથમિક પરિણામિક” નામના ચોથા ભંગનું સ્વરૂપ છે. प्रश्न-(कयरे से णामे उवसमियखइयन ओवसमियपारिणामियविष्फने?) હે ભગવન્! પથમિક, ક્ષાયિક ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાના સાગથી બનતે પાંચમાં પ્રકારને સાન્નિપાતિક ભાવ કેવો છે?

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