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अनुयोगद्वारसूत्र
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रौसि मयूरः, कुक्कुटः ऋषभं स्वरम् । हंसो रौति गान्धारं, मध्यमं च गवेलकः (मेषाः) ॥ ४ ॥ अथ कुसुमसंभवे काले, कोकिलाः पञ्चम स्वरम्। षष्ठं च सारसाः क्रौंचाः, निषादं सप्तमं गजाः ||५|| सप्तम्वराः अजीवनिश्रिताः प्रज्ञप्ताः तद्यथाषड्जं रौति मृदङ्गो, गोमुखी ऋषभं स्वरं । देखो रौति गन्धार, मध्यमं पुनर्झहरी ॥ ६ ॥ चतुश्चरणमतिष्ठाना, गोधिका पञ्चमं स्वरं। आडम्बरो धैवतकं, महाभेरीश्च सप्तमम् || सू० १६३ ॥
ना चाहिये । ( सरद्वाणा वियाहिया) इस प्रकार से सात स्वरस्थान व्याख्यात किये हैं । (सत्तसरा जीवणिस्त्रिया पण्णत्ता ) सात स्वर जीवनिश्रित कहे गये हैं । (तंजहा ) वे इस प्रकार से हैं - ( सज्जं रवह मरो) षड्जस्वर मयूर बोलता है (कुक्कुडो रिसहं सरं) कुक्कुट - ऋषभस्वर बोलता है | ( हंसो रवइ गंधारं ) हंस गांधार स्वर बोलता है ( मज्झिमं च गवेलगा) गवेलक- मेष बोलते हैं । (अह कुसुमसंभवे काले कोइला पंचमं सरं ) पुष्पोत्पत्तिकाल में कोयल पंचम स्वर बोलती है (छटुं च सारसा का छठा धैवत स्वर सारस और क्रौंच पक्षी बोलते हैं। (सत्तमं नेसायं गया) सातवां जो निषाद स्वर है उसे गज बोलते है। (सत सरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता) सात स्वर अजीवनिश्रित कहे
मध्यम-स्वर
गये हैं- (नं जहा ) वे इस प्रकार से हैं - ( सज्जं रवह मुयंगो) षड्ज मृदंग बोलता है (गोमुही रिसहं सरं) गोमुखी - वाद्यविशेष- ऋषभ स्वर बोलता है । (संखो गंधारं रवइ) शंख - गांधार स्वर बोलता है । (झल्लरीमज्झिम) झल्लरी मध्यमस्वर बोलता है । (चउचरणपट्टाणा गोहिया)
(तसरा जीवणिस्त्रिया पण्णत्ता) सात स्वरे। भवनिश्रित हेवामां माव्या (जहा) ते या प्रभा छे - ( सज्जं वइ मउरो) षडू ४ स्वर मयूर - भोर-माले छे. (कुक्कुडो रिसहं सरं) । ऋषभ स्व२ मासे छे. (मज्झिमं य गवेलगा) श्वेत- मेष- मध्यम स्वर से छे (अह कुसुमसंभवे काले कोइला पंचमं खरं ) पुण्योत्पत्ति सभां-यस पयमस्वर बोले छे. (छहूंच सारखा कोंचा) छ । धैवत स्वर सारस भने-डौंयपक्षी विशेष मासे छे. (वत्तमं नेसायं गया) सातमेो निषाद स्वर हाथी मोसे छे (प्रत्तसरा अजीवनिस्सिया पण्णत्ता) सात स्वरे। अभूव निश्रित उडेवामां आव्या छे (तंजहा) ते या प्रमाणे - सज्जं वह मुयंगो) षडू ४ स्वर भृहगमांथी नाणे छे. (गोमुही रिसहं खरं ) आभुमी - वाद्य विशेषभांथी ऋषभ स्वर नाम्जे छे. (संखो गंधारं खइ ) शमभांथी गांधार स्वर नीउणे छे. (झल्लरी मज्झिमं) जासरमांथी मध्यम स्वर नीडजे छे. (चरचरणपट्टाणा गोहिया) न्यारे पग लेना भीन पर भूरवामां