Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 806
________________ ७९३ मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६३ कारणतो स्वरनिरूपणम् मज्झिमं पुण झल्लरी ॥६॥ चउचरणपइट्ठाणा, गोहिया पंचमं सरं। आडंबरो धेवइयं, महाभेरी य सत्तमं ॥७॥सू०१६३॥ छाया-एतेषां खलु सप्तानां स्वराणां सप्त स्वरस्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाषड्ज च अग्रजिया, उरसा ऋषभं स्वरम् । कण्ठाग्रेण गान्धारं, मध्ये जिया मध्य. पम् ॥२॥ नासिकया पञ्चमं ब्रयात, दन्तोष्ठेन च धैवतम् । मृi च निषादम्, स्वरस्थानानि व्याख्यातानि ॥३॥ सप्तस्वराः जीवनिश्रिताः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-षड्ज इस प्रकार नाम से स्वरों का कथन करके अब सूत्रकार उन्हीं स्वरों का कारण की अपेक्षा लेकर कथन करते हैं'एएसिं णं सत्तण्हं' इत्यादि । शब्दार्थ-(एएसिणं) इन (सत्तसराणं) सात स्वरों के (सप्त)सात (सरहाणा) स्वरस्थान (पण्णत्ता) कहे गये हैं। (तं जहा) वे इस प्रकार से हैं।-(सज्जं च अग्गजीहाए) जिह्वा के अग्र भाग से षड्ज स्वर बोलना चाहिये (उरेण रिसहं सरं) वक्षस्थल से ऋषभस्वर बोलना चाहिये (कंटुग्गएणं गंधारं) कण्ठ के अग्रभाग से गांधार स्वर षोलना चाहिये । (मज्झजीहाए मज्झिमं) जिहवा के मध्य भाग से मध्यम स्वर बोलना चाहिये । (नासाए पंचम) नासिका से पंचम स्वर पोलना चाहिये (दंतोटेण य घेवयं ) दन्तोष्ठ से धैवत स्वर बोलना चाहिये ( मुद्धाणेणं य णेसायं बूया) और मूर्धा से निषाद स्वर बोल. આ પ્રમાણે સ્વરનું નામની અપેક્ષાએ કથન કરીને હવે સૂત્રકાર તેજ સ્વારનું કારણની અપેક્ષાએ કથન કરે છે "एएसिणं सत्तण्हं" त्याह शा-(एएसिं णं) । (सत्तसराणं) सात स्परेशना (सत्त) सात (सर. दाणा) ११२स्थान। (पण्णत्ता) उपामा मा०यां छे. (तंजहा) . प्रमाणे (सज्जं च अग्गजीहाए) मना अमाथी १३ २१२नुं यार ४२ नये (उरेणं रिसहं सरं) पक्षस्यथा अपम २१२नु स्यार ४२वु नये. (कंठुग्गएणं गंधारं) न समाथी आधार २१२नु स्या२९५ ४२मध्ये (मज्झजीहाए मज्झिम) मना मध्यभागी मध्यम १२नु न्या२५ ४२७ न. (नासाए पंचम) नाथी पंयम:५२नु यार ४२वु नये. (दंतोटेण य घेवयं) इन्त४िथा धैवत २१२ २२।२५५ ४२ मध्ये (मुद्धाणेणं य णेसायं बूया) भने भूर्धाधा निष: २१२नु स्या२५ ४२ . (सरदाणा वियाहिया) मा प्रमाणे सात १२ स्थानानु ४थन ४२पामा मा०युछे. अ० १००

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