Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 820
________________ ८०७ बसुबोगन्द्रिका टीका सूत्र १६६ स्वरोत्पत्तिनिरूपणम् काराः ॥२॥ आदिमृदुम् आरममाणाः समुदहन्तश्च मध्यकारे । अवसाने क्षपयन्तः, प्रयोऽपि गीतस्य आकाराः॥३॥ स१६६॥ टोका-'सत्त सरा' इत्यादि एते षड्जादिसप्तस्वराः कुतः संभवन्ति उत्पधन्ते ? तथा-गीतस्य का योनयो-जातयो भवन्ति ? तथा गीतस्य कति समया=कियत्काल प्रमाणा उच्छ्वासा भवन्ति ? तथा-गीतस्य कति वा=कियन्तो वा आकारा:= आकृतयः-स्वरूपाणि भवन्ति ? इति चत्वारः प्रश्नाः। उत्तरयति-षड्जादयः सप्त स्वरा नामितो भवन्ति-जायन्ते। गीतं च रुदितयोनिकम्-रुदितं पोनिः समानरूपतया जाति यस्य तत्तथाविधं भवति, गीतं रोदनसमानं भवती त्यर्थः । उच्छनासाश्च पादसमा भवन्ति । यावता समयेन वृत्तस्य पादः समाप्यते आकार होते हैं। (आइमिउ आरभंता, समुव्वहंता य मझगारंमि, अवसाणे तजवितो तिन्निय गीयस्स आगारा) सर्वप्रथम गीत मृदुध्वनिवाला होता है । मध्यभाग में वह तेजध्वनिवाला और अन्त में मन्द्रध्वनिवाला होता हैं। ___ भावार्थ-सूत्रकार ने इस सूत्र द्वारा " षड्ज आदि सात स्वर कहां से उत्पन्न होते हैं ? गीत की जातियां क्या है ? गीत के उच्छवासों के समय का प्रमाण कितने हैं, और गीत किस आकार का होता है ?" इन चार प्रश्नों के उत्तर दिये हैं । इसमें उन्हों ने यह प्रकट किया है कि-ये पूर्वोक्त षडूज आदि सात स्वर नाभिस्थान से उत्पन्न होते हैं। गीत रोने की जाति के जैसा होता है। यहां योनि शब्द का अर्थ जाति है। छन्द का पाद जितने समय में समाप्त होता है उतना ही समय गीत के पास २३१ास डाय छे. (गीयस्स तिण्णि आगारा) गीतना ३ भार डाय छे. (आइमिउ आरभंता, समुव्वहंता य मजमगारंमि अवसाणे तज्जवितो तिन्निय गीयस्स आगाग) स प्रथम गीत पनि युक्त हाय छे. मध्यભાગમાં તે તીવ્રધ્વનિ યુક્ત હોય છે અને છેવટે મન્દ્રધ્વનિ યુક્ત હોય છે. सापाय-सूत्रमारे सा सूत्र १ " षड्ज" मेरे सात ११२। ज्यांचा ઉત્પન થયા છે? ગીતના ઉત્પત્તિ સ્થાન ક્યાં છે? ગીતના ઉચ્છવાસોનું પ્રમાણ કેટલું છે? અને ગીતને આકાર કઈ જાતને છે? એ ચાર પ્રશ્નોના જવાબ આપવામાં આવ્યા છે. આમાં તેમણે સ્પષ્ટ એ છે કે પૂર્વોક્ત ષડજ વગેરે સાત વાર નાભિસ્થાનમાંથી ઉપન થયા છે ગીતની જ્ઞાતિ રુદન જેવી હોય છે. અહીં નિ શબ્દને

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