Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 790
________________ ७७ मनुयोगवन्द्रिका टीका सूत्र १६० चतुष्कसंयोगनिरूपणम् मिकक्षायोपमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्-औदयिकमितिमानुष्यम् , उपशान्ताः कषायाः, क्षायोपशमिकानि इन्द्रियाणि, पारिणामिको जीवः । एतत् खलु तन्नाम. औदयिकोपमिक क्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्३ । कतरत् तन्नाम औदायिक शायिकक्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम् ? औदयिकक्षायिकक्षायोपशमिकपशमिक, और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ भंग कैसा है ? उत्तर-( उदय उपसमियखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) औदयिक, औपशमिक, क्षायोपशमिक एवं पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न तीसरा भंग ऐसा है-(उदएत्ति मणुस्से, उवसंता कसाया, खोवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे) मनुष्य गति यह औदायिक भावरूप है, उपशांत हुई कषायें औपशमिक भाव हैं, इन्द्रियां क्षायोपशमिक भाव रूप है और जीवस्व यह पारिणामिक भाव रूप है । (एस ण से णामे उदय उवसमियखओवस मिय पारिणामियनिष्फण्णे) इस प्रकार यह औदयिक, औपशमिक और पारिणा. मिक इन चारभावों के संयोग से निष्पन्न हुआ इस नामका तृतीय भंग है। (कयरे से णामे उदइय खहयखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे ?) हे भदन्त ! औदयिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन चोर भावों के संयोग से निष्पन्न भंग कैसा है ? प्रश्न-(कयरे से णामे उदइयउवसमियखओवरमियपारिणामियनिष्फन्ने) है ભગવન! ઔદયિક, ઔપશમિક, ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાના સંગથી બનતા સાન્નિપાતિક ભાવ રૂ૫ ત્રીજા ભંગનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर-(उदइयउवसमियखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) मोहयि, भी५. શમિક ક્ષય શમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાવના સંગથી मनतो त्रीने सान्निति भा१ मा मारने। छ-(उदइएत्ति मणुस्से, उवसंता कसाया, खओवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे) alon १२ना सान्निपाતિક ભાવમાં મનુષ્યગતિ ઔદયિક ભાવ રૂપ છે, ઉપશાન્ત કષા ઓપશમિક ભાવ રૂપ છે, ઇન્દ્રિય ક્ષાપશમિક ભાવ રૂપ છે અને છેવત્વ પારિણામિક १ ३५ छे. (एसणं से णामे उसइयवममियख ओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) આ પ્રકારને આ “દયિકોપથમિક ક્ષાપશમિક પરિણામિક ” નામને त्री छे. प्रश्न-(कयरे से णामे उदइयखइयख ओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे १) હે ભગવન્! ઔદયિક, ક્ષાયિક ક્ષાપશમિક અને પરિણામિક, આ ચાર ભાના સગથી બનતા થા પ્રકારના સાન્નિપાતિક ભાવનું કવરૂપ કેવું છે. म. ९८

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