Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 796
________________ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १६१ पञ्चमसंयोगनिरूपणम् औदयिकौ पशमिकक्षाधिकक्षायोपशमिकपारिणामिक निष्पन्नम् ?, औदयिकौपशमिकक्षायिक क्षायोपशमिकपारिणामिक निष्पन्नम् औदयिकमितिमानुष्यम्, उपशान्ताः कषायाः, क्षायिकं सम्यक्त्वं क्षायोपशमिकानि इन्द्रियाणि, पारिणामिको जीवः । ૯૮૩ (अत्थिणामे उदय उबस मियखइयखओवस मियपारिणामियनिष्कण्णे?) औदयिक, औपशमिक, क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन पांचों भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ औदयिकौपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक पारिणामिक इस नामका सान्निपातिक भाव है । ( कयरे से नामे उदय समियखइद्यख ओवसमियपरिणामियनिष्कण्णे ?) हे भदन्त ! औदयिकौपशमिक क्षायिक क्षायोपशमिक पारिणामिक नाम का जो पांचों भावों के संयोग से निष्पन्न सान्निपातिक भाव वह कैसा है ? उत्तर- (उदय उवसमियत इयखओवस मिय पारिणामियनिष्कण्णे) औदयिक, औपशमिक क्षायिक, क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन पांचों भावों के संयोग से जो सान्निपातिक भाव निष्पन्न होता है वह ऐसा है - ( उदइति मणुस्से उबसंता कसाया खइयं सम्मतं खओवसमियाई इंदियाई पारिणामिए जीवे) यहां इस सान्निपातिक भाव में मनुष्य गति यह औदयिकी है, उपशमित कषायें औपशमिक भाव है क्षायिक सम्पत्व क्षायिकभाव है इन्द्रियां क्षायोपशमिकभाव है जीवत्व मिय खइयस्खओवसमियपारिणामियनिष्कण्णे) मोहयि, औोपशमि, क्षायिक, ક્ષાયેાપશમિક અને પારિણામિક, આ પાંચે ભાવાના સયોગથી મનતે ઔયિકીપશમિક ક્ષાયિક ક્ષાયેાપશમિક” નામના સાન્નિપાતિક ભાવ, આ એક જ ભંગ અને છે. 66 હૈ प्रश्न- (कयरे से णामे उदइय उत्र समियख इय व ओश्खमियपारिणामियन फण्णे ) भगवन् ! मोहयि, औपशभिङ, क्षायिक, क्षायोपशमि भने पारिसि આ પાંચે ભાવેાના સયાગથી નિષ્પન્ન થતા સાન્નિપાતિક ભાવ કેવા છે ? उत्तर-(उदइयउवसमियखओवसमियपारिणामियनिष्कण्णे) ઔપશમિક, ક્ષાયિક, ક્ષાયે પશમિક અને પારિણામિક, આ પાંચે ભાવેાના मोहयिक, सयोगधी निष्पन्न थतो सान्नियातिङ लाव या प्रअरना छे - ( उदइत्ति मणस्से, उवसंता कसाया, खइयं सम्मत्तं, खओवसमियाई इंदियाई, पारिणामिए શ્રીને) આ સાન્તિપાતિક ભાવમાં મનુષ્યગતિ ઔયિક ભાવ રૂપ છે, ઉપશાન્ત કષાયે ઔપમિક ભાવ રૂપ છે, ક્ષાયિક સમ્યક્ત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે, ઇન્દ્રિયા ક્ષાાપશમિક ભાવ રૂપ છે અને જીવ પારિજ઼ામિક ભાવ રૂપ છે,

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