Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 789
________________ २७६ मनुयोगद्वार 3 पारिणामिक निष्पन्नम् ? औदथिकोपशमिकक्षायिकपारिणामिक निष्पन्नम् - औदयिकमिति मानुष्यं, उपशान्ताः कषायाः, क्षायिकं सम्यक्त्वं, पारिणामिको जीवः । एतत् खलु तन्नाम औदयिकौपशमिकक्षायिकपारिणामिक निष्पन्नम् २, कतरत् तन्नाम औदयिकौपशमिकक्षायोपशमिकपारिणामिक निष्पन्नम् ?, औदयिक पशु(करे से नामे उदउवस मियख इयपारिणामियनिष्फण्णे १) हे भदन्त ! औदयिक औपशमिक, क्षायिक और पारिणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न जो सान्निपातिक भाव रूप भंग है वह कैसा है ? उत्तर- (उदय उपसमियखझ्यपारिणामियनिष्कण्णे) औदपिक औपशमिक, क्षायिक, एवं पारणामिक इन चार भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ अंग ऐसा है - ( उदइएत्ति मणुस्से उवसंता कसाया, खइयं सम्मतं पारिणामिए जीवे) यहां मनुष्यगति यह औदधिक है, उपशांत हुई कषायें औपशमिक भावरूप है, क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिकरूप है । तथा जीवश्व यह पारिणामिक रूप है । (एसणं से णामे उदइयवस मिथ खइयपारिणामियनिष्फoणे) इस प्रकार औदयिक, औपशमिक, क्षापिक और परिणामिक इन चार भंगों से निष्पन्न हुआ इस नाम का यह द्वितीय अंग है । ( कयरे से णामे उदय उपसमियखओवसमिपारिणामियनिष्कण्णे ? ) हे भदन्त । औदयिक, औपशमिक, क्षायो प्रश्न - ( कयरे से णामे उदइय उवस मियखइयपारिणामियनिटफण्णे) डे ભગવન્ ! ઔદિયક, ઔપશમિક, ક્ષયિક અને પારિણામિક, આ ચાર ભાવાના સચેાગથી નિષ્પન્ન થતા જે સાન્નિપાતિક ભાવરૂપ ખીન્ને ભ ગ છેતેનું સ્વરૂપ કેવું છે? उत्तर- (उदइयउत्रस्रमियख इय गरिणामियनिष्फण्णे) मोहयिक, भोप મિક ક્ષાયિક અને પારિણામિક, આ ચાર ભાવેના સચેાગથી બનતા सान्निपात भावनुं स्व३५ मा प्रहार छे - ( उदद्दए त्ति मणुस्से, उवसंता कसाया, खइयं सम्मत्तं, पारिणामिए जीवे) या सान्नियातिः भावभां मनुष्यगति थोड યિક ભાવરૂપ છે, ઉપશાન્ત કષાયે ઓપશમિક ભાવ રૂપ છે, સાયિક સમ્યક્ત્વ ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે અને જીવત પરિણામિક ભાવરૂપ છે. (एसणं से णामे उदय असमियखइय पारिणामियनिष्कण्णे) या अारनु मोहयि ઔપમિક ક્ષાયિક અને પારિણામિક આ ચાર ભાવાના સયાગથી બનેલા સાન્નિપાતિક ભાવ રૂપ મીમા ભંગનું સ્વરૂપ છે,

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