Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 780
________________ ७६७ अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५९ त्रिकसंयोगनिरूपणम् गमिए जीवे) उपशमित हुई कषायें औपशमिक भाव हैं क्षायिक सम्य. स्व क्षायिकभाव है और जीव पारिणामिकभाव है । (एसणं से णामे उवसमियखझ्यारिणामियनिप्फण्णे) इसप्रकार यह औपशमिकक्षायिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हआ सन्निपातिकभाव है । (कयरे से णामे उवसमियख भोवसमिय पारिणामिय निप्फण्णे ? ) हे भदन्त ! औपशमिक क्षायोपशमिक और पोरिणामिक इनतीनों भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिकभावकैसा है ? उत्तर-(उवसमिय खओवसमियशरिणामियनिष्फण्णे) औपश. मिक, क्षायोपशमिक, और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सानिपातिक भाव इस प्रकार से है (उवमंना कमायाखओवसमियाइं इंदियाइं पारिणामिए जीवे) उपशमित कषाय औपशमिक भाव है,इन्द्रियां क्षायोपशमिक भाव हैं और जीव यह पारिणामिक भाव है। (एसणं से णामे उवसमियवओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) इस प्रकार यह औपशमिक क्षायोपशमिक और पारिणामिक इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ सान्निपातिक भाव है। (कयरे से णामे खाय खोवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) हे भदन्त ! क्षायिक क्षायोपशमिक થયેલા કષાયે ઔપશમિક ભાવ રૂપ છે, ક્ષાયિક સ ફ ક્ષયિક ભાવ રૂપ छ भने ७१ परिणामि मा ३५ छे. (एसणं से णमे उचसमियखइयपारिणामियनिष्फण्णे) मा रन मापशभि क्षायिर पारिवामिनामना સાઘિપતિક ભાવ છે. प्रश्न-(कयरे से णामे उवसमियखोवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) હે ભગવન ! ઔપશમિક, ક્ષાપશમિક અને પરિણ મિક, આ ત્રણ ભાવના સંગથી નિષ્પન્ન થતે નવમો સવિપતિક ભાવ કેવો છે ? उत्तर-(उत्रसमिय खओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) भोपशभिर, क्षायो५मि અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાવેના સંગથી બનતે નવમો સાન્નિપાતિક ભાવ मा प्रहार छ-(उवसंता कसाया, खओवसमियाइं इंदियाई, पारिणामिए जीवे) ઉપશમિત કષાયે ઔપશમિક ભાવ રૂ૫ છે, ઈન્દ્રિયો ક્ષાપશમિક ભાવ રૂપ छ भने ७१ पारिवामि मा ३५ छे. (एसणं से णामे उवसमियखओवन मियपारिणामियनिष्फण्णे) मा २ने। मोपभि क्षा५शमि भने पारिक्षा. મિક નામને સાન્નિપાતિક ભાવ છે. प्रश्न-(कयरे से णामे खइयखओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे १) है ભગવદ્ ! ક્ષાયિક, ક્ષાયોપથમિક અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાવના સંગથી બનતે દસમ સાન્નિપાતિક ભાવ કે છે?

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