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४७९ अनुरोगबन्द्रिका टीका सूत्र ११३ स्पर्शनादारनिरूपणम् लोकं स्पृशनि। अनानुपूर्व्यवक्तव्यकद्रव्योर्निरवकाशताप्रसङ्गात् पूर्ववत् लोकस्य देशोनानुपूर्वीद्रव्यस्पर्शना बोध्येति भावः। नानाद्रव्याण्याश्रित्य तु आनुपूर्वीद्रव्याणि नियमात् सर्वलोकं स्पृशन्ति । अनानुपूर्व्यवक्तव्यकद्रव्याणां स्पर्शना तु अत्रैवाव्यव: स्तिपूर्वोक्त क्षेत्रद्वारबद् बोध्या। इति स्पर्शनाद्वारम् ।।१० ११३॥ भागे वा असंखेज्जे भागे वा) संख्यात भागों को स्पर्श करता है, असं. ख्यात भागों को स्पर्श करता है' (देमूणं वालोग फुसइ) देशोन लोक का भी स्पर्श करता है । (नाणादव्वाइं पडुच्च णियमा सव्वलोय फुसंति) नाना द्रव्यों की अपेक्षा करके तो आनुपूर्वीद्रव्य नियम से सर्वलोक का स्पर्श करते हैं (अणाणुपुत्वीदव्वाइं अवत्तव्धगदव्वाइं च जहा खेत्तं नवरं फुमणा भाणियन्वो) अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों की स्पर्शना तो यहीं पर अव्यवहित पूर्वोक्त क्षेत्रद्वार की तरह जानना चाहिये ।
भावार्थ-नैगमव्यवहारनय संमत आनुपूर्वी द्रव्य लोक के संख्यातवें भाग की कोई एक लोक के असंख्यातवे भाग की कोई एक लोक के संख्यात भागों की, कोई एक असंख्यात भागों की, और कोई एक देशोन सर्वलोक की स्पर्शना करते हैं। यहां पर जो कोई एक आनुपूर्वी द्रव्य को देशोन लोक की स्पर्शना करने का कथन किया है सो उसका कारण यह है कि यदि आनुपूर्वी द्रव्य समस्त लोक की स्पर्शना करें तो अनानुपूर्वी और अवक्तव्यक द्रव्यों को अवकाश प्राप्ति का अभाव होगा। २५२ छ, (संखेजे भागे वा, असंखेज्जे भागे वा) सप्यात सामान पy २५. ४३ 2, असभ्यात भाजन ५५ ५५ रे छे, (देसूणं वा लोगं फुसइ) अन शान ५५ ५५ रे छे. (नाणादव्वाई पदुच्च णियमा सव्वलोय फुपति) विविध द्रव्यानी अपेक्षा पिया२ ४२वामा म., तो मानुषी' द्रव्ये। नियमयी साने ५५१२. (बणाणुपुत्वी दवाई भवत्तव्वगव्वाई व जहा खेत्तं नवरं फुसणा भाणियव्या) अनानुनी भने अतव्य द्रव्ये.नी સ્પર્શન વિષેનું કથન પૂર્વોક્ત ક્ષેત્રદ્વારના કથન મુજબ જ સમજવું જોઈએ.
ભાવાર્થ-નગમગ્યવહાર નયસંમત આનુપૂર્વી દ્રવ્યોમાંનું કંઈ એક આવી દ્રવ્ય લેકના સંખ્યામાં ભાગની, કેઈ એક આનુપૂર્વા દ્રવ્ય લેકના સંખ્યાત ભાગોની, કેઈ એક આનુપૂર્વી દ્રવ્ય લેકના અસંખ્યાત ભાગોની અને કેઈ એક આનુપૂવી દ્રવ્ય દેશોન સર્વલેકની સ્પર્શના કર છે. અહીં “એક આનુપૂવ દ્રવ્ય દેશોન સર્વકની સ્પર્શના કરે છે.” આ પ્રકારનું જે કથન થયું છે તેનું કારણ એ છે કે જે એક આનવી દ્રવ્ય સમસ્ત લોકની સ્પર્શના કરતું હોય, તે અનાનુપૂવ અને અવકતવ્યક