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मंजुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५४ क्षायिकभावनिरूपणम्
टीका-'से कि तं' इत्यादि
अथ कोऽसौ क्षायिकः ? इति शिष्य प्रश्नः । उत्तरयति-क्षायिकः क्षय एव, क्षयेण निष्पन्नो वा क्षायिकः । स द्विविधः प्रज्ञप्तः। द्वैविध्यमेवाह-तद्यथा-क्षायिका क्षयनिष्पन्नश्च । तत्र-क्षायिकः खलु अष्टानां कर्मप्रकृतीनां ज्ञानावरणीयाधष्टविध. कर्मप्रकृतीनां क्षयः। क्षयनिष्पन्नस्तु अनेकविधः प्रज्ञप्तः। अनेकविधत्वमाह
अब सूत्रकार क्षायिक भाव का निरूपण करते हैं"से किं तं खहए " इत्यादिशब्दार्थ-(से कि तं खहए ?) हे भदन्त ! वह क्षायिक क्या है ?
उत्तर-(खहए दुविहे पण्णते) क्षायिक दो प्रकार का कहा गया है।(तंजहा) (जैसे-खहए य खयनिष्फण्णे य) एक क्षय रूप क्षायिक और दूसरा क्षय निष्पन्न । (से किं तं खहए) हे भदन्त ! वह क्षायिक क्या है? (अट्ठण्हं कम्मपयडीणं खएणं) आठ कर्म प्रकृतियों का जो क्षय है वही क्षायिक है। (सेतं खहए) इस प्रकार वह यह क्षायिक है (से किं तं खयनिफण्णे) हे भदन्त ! वह क्षयनिष्पन्न क्षायिक क्या है ? (खयनिष्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते).
उत्तर-क्षय निष्पन्न क्षायिक भाव अनेक प्रकार का है। (तंजहा) जैसे-(उप्पण्णणाणदंसणधरे अरहा जिणे केवली) उत्पन्न ज्ञान दर्शन को
હવે સૂત્રકાર ક્ષાયિક ભાવનું નિરૂપણ કરે છે– " से कि तं' खइए" त्याह
शा-(से कि त खइए ?) 3 मन् ! पूर्व प्रान्त क्षायि: भानु સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(खइए दुविहे पण ते) क्षायि भाव से प्रारना ४ह्यो छे. (त'जहा) तमे प्रा। नी2 प्राय छे-(खइए य ख य निप्फण्णे य) (१) क्षय ३५ क्षायि मन (२). क्षयनि०५न.
प्रश्न-(से कि त खइए ?) 3 मापन् ! क्षायि: भानु २१३५ हैं ? उत्तर-(अट्ठण्हं कम्मपयडीणं खरणं) मा प्रकृतिमाना क्षयनु नाम क्षायि छे. (से त खइए) क्षायिनु मा प्रा२नु २१३५ छे.
प्रश्न-से कि त खयनिष्फण्णे ?) ३ मापन ! क्षायि४ लापन lands રૂપ ક્ષયનિષ્પન્ન ક્ષાયિક ભાવનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(खयनिष्फण्णे अणेगविहे पण्णत्ते) क्षयनि०पन्न क्षायिमा भने uat रना हो छे. (तंजहा) २...(उप्पण्णणाणसणधरे धरहा जिणे केवली) पन्न જ્ઞાનદર્શનધારી અહત જિન કેવલી ક્ષયનિષ્પન ક્ષાયિક ભાવ રૂપ છે. જેવી