Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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मनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५९ त्रिकसंयोगनिरूपणम् औदयिक औपशमिक, एवं क्षायोपशमिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ औदयिकोपशमिक क्षायोपशमिक सानिपातिक भाव (अस्थिणामे उदय उवसमिय पारिणामिय निष्फण्णे) तीसरा-औदयिक,
औपशमिक और पारिणामिक, इन तीन भावों के संयोग से निष्पन्न हुआ औदयिक औपशमिक पारिणामिक सानिपातिक भाव (अत्थिणामे उदझ्यखझ्यखभोवसमियनिप्फण्णे) चौथा-औदयिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न औदयिक क्षायिक, क्षायोपशमिक सान्निपातिक भाव (अस्थिणामे उदइय खइय पारिणोमिय निष्फण्णे) पांचवां-औदयिक क्षायिक और पारिणामिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न औदयिक क्षायिक पारिणामिक सान्निपातिक भाष (अस्थि णामे उदइय खोवसमियपारिणामियनिप्फण्णे) छठा-औद. यिक क्षायोपशमिक और पोरिणामिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न औदयिक क्षायोपशमिक पारिणामिक सान्निपातिक भाव (अस्थिणामे उवसमियखझ्यखओवसमियनिप्फण्णे) सातवां-औपशमिक क्षायिक और क्षायोपशमिक इन तीनों भावों के संयोग से निष्पन्न औपशमिक, क्षायिक क्षायोपशमिक नाम का सान्निपातिक भाव ઔદયિક, ઔપથમિક અને ક્ષાપશમિક, આ ત્રણ ભાવના સાગથી બનતે “ઔદયિકૌપથમિક ક્ષાપશમિક સાન્નિપાતિક ભાવ.”
(अत्थिणामे उदइयउवालमियपारिणामियनिष्फण्णे३) (3) मी यि४, भी५३મિક અને પરિણામિક આ ત્રણ ભાના સોગથી બનતે “ઔદયિકોપથમિક પરિણામિક સાતિપાતિક ભાવ.”
(भत्थि णामे उदइयखइयखओक्समियनिदफण्णे) (४) मोहयि४, क्षायि અને ક્ષાપશમિક સાન્નિપાતિક ભાવ.”
(अत्थि णामे उदइयखइयपारिणामियनिष्फण्णे) (५) मौयि, क्षायि અને પરિણામિક, આ ત્રણ ભાવના સાગથી નિષ્પન્ન થતે “ઔદયિક ક્ષાયિક પરિણામિક સાન્નિપાતિક ભાવ.”
(अत्थि णामे उदइयख ओवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) (6) मोहयि, क्षायो. પથમિક અને પરિણાર્મિક ભાવના સાગથી બનતે “ઔદયિક ક્ષાપથમિક પરિણામિક સાન્નિપાતિક ભાવ.”
(अत्थि णामे उपसमियखइयखओवसमियनिष्फणे) (७) मो५मिड, ક્ષાયિક અને ક્ષાપથમિક, આ ત્રણ ભાના સંયોગથી બનતે “ઔપણ. 'મિક ક્ષાયિક ક્ષાપશમિક સાન્નિપાતિક ભાવ.”
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