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अनुयोगद्वारले भना-'अस्त्ति नाम औदयिकौपशमिकनिष्पन्नम्' इत्यारभ्य 'अस्ति नाम 'अस्ति नाम क्षायोपशमिकपारिणामिकनिष्पन्नम्' इत्यन्ता बोध्याः। एषु प्रौदयिकेन सह औपशमिकादि भावचतुष्टयसंयोगात् चत्वारो भङ्गाः, औपशमिकेन सह क्षायिकादिभावत्रयस्य संयोगात् त्रयो भङ्गाः, क्षायिकेण सह क्षायोपशमिकादि भावद्वयसंयोगात् द्वौ भङ्गो, तथा-क्षायोपशमिकेन सह
शब्दार्थ-(एत्थ णं जे ते दस दुगसंयोगा, ते णं इमे) यहांजो दो दो
भावों के संयोग से भाव निष्पन्न-होते हैं वे इस प्रकार से है(अस्थिगामे उदय उवसमियनिफण्णे ? ) पहिला औदयिक और औप
शमिक के संयोग से निष्पन्न भाव एक, (अस्थिणामे उदइयखाहग. निफण्णे २) दूसरा औदपिक और क्षायिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थिणामे उदइयखोवसमनिष्फण्णे) तीसरा-औदयिक और क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थि णामे उदइयपारिणामियनिष्फण्णे) चौथा औदयिक और पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थि णामे उपसमियखड्य' निष्कणे) पांचवा-औपशमिक और क्षायिक के संयोग से निष्पन भाव (अस्थिणामे उवप्तमिय ख भोवप्तभियानकपणे) छठा-औपशमिक और क्षायोपशमिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थिणामे उपसमियपारिणामियनिष्फणे) सातवां-औपशमिक और पारिणामिक के संयोग से निष्पन्नभाव (अस्थिणामे खहय, ख भोवत्समियनिष्फणे) आठवां-क्षायिक और क्षायोपशमिक के संबन्ध से निष्पनभाव (अस्थिणामे खड्य पारि
शाय-(एत्थ णं जे ते दस दुगसंयोगा, तेणं इमे) भन्ने भावना सयार गयी २ इस भाव मि01-1 ५.५ छे ते नये प्रभारी -(अस्थिणामे उदय उवस मिय निष्फण्णे) (१) मौयि भने मोपशभिाना सयोगथानिपत भाव (अस्थिणामे सदइयखाइयनिष्फण्णे २) (२) मोहथिई भने क्षायिना सयाजयी नि-न ये भाव (अस्थिणामे उदइय खोवसमनिष्फणे३) (3) मोहरि अन क्षायो५मिना साथी नि०पन्न ये माप (अस्थिणामे उदय पारिणामिवनिष्फण्णे) (४) मोहयि भने पारिमिना साथी - माप (अत्थिणामे उवलमियखइयनिष्फण्णे) (५) भो५मि भने क्षायिना सयोगथी निपन्न माप (अस्थिण मे उवसमियख ओक्समियनिकणे) (6) मीपशभिः अ. क्षायो५मिनसयोगयी नि०५न्न थये। माप (अस्थिणामे उवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) (७) भोपशभि भने पारिवामिना सया. थी नि०पन्न साप (अत्थिणामे खइयख भोवसमियनिष्फण्णे) (८) क्षायिक