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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १५८ द्विकादिसंयोगनिरूपणम्
७५१ पारिणामिकभावस्य संयोगादेको भङ्गः । इति दश भङ्गा बोध्याः। इत्थं सामान्यतो दश भङ्गान् ज्ञात्वा विशेषतस्तान जिज्ञापितुकामः शिष्यः पृच्छति-कतरतू तन्नाम
औदयिकोपशमिकनिष्प-नम्-औदयिकोपशमिकभावेन यन्निष्पद्यते तन्नाम किम् ? इति । उत्तरयति-औदायिकौपशमिकनिप्पानमे विज्ञेयम्-औदयिकमितिमानुष्यम्, जामियनिष्फणे) ९वां-क्षाइक और पारिणामिक के संयोग से निष्पन्न भाव (अस्थिणामे खोवसमियारिणामियनिष्फण्णे) १० वां-क्षायो. पशमिक और पारिणामिक के संयोग से निप्पन्न हुआ भाव । इस प्रकार ये औदायिक के साथ औपशमिक आदि चार भावों के संयोग से ४ भंग, औपशमिक के साथ क्षायिक आदि तीन भंगो के संयोग से तीनभंग, क्षायिक के माथ क्षायोपशमिक आदिदो भावों के सयोग से दो भंग तथा क्षायोपशामक के सोथ पारिणामिक भाव के संयोग से एक भंग ये दश भंग हो जाते हैं । इस प्रकार सामान्य से दश भंगों को जानकर विशेषरूप से शिष्य पूछता है। कि (कयरे से णामे उदय उवसमिय निष्फण्णे ? हे भदन्त ! औदयिक एवं औपशामिक भाव के संयोग से जो सान्निपातिक भावरूप भंग निष्पन्न होता है वह कैसा है ?
उत्तर-(उदहयउवसभियनिष्फण्णे) औदारिक एवं औपशमिक
भने योपशभिाना सयोगथी निपन्न माप (अस्थि ण मे व इय पारिण मियनिष्फण्णे) (6) क्षायि भने पारिवामिना सयोगी नियन्न माप (अस्थिणामे खोवसमियपारिणामियनिष्फण्णे) (१०) क्षाये ५३भि भने पारिवामिना સંગથી નિષ્પન્ન ભાવ આ પ્રકારે ઔદયિકની સાથે પશમિક આદિ ચારના સંગથી ૪ ભંગ, પશર્મિક ભાવની સાથે ક્ષાયિક આદિ ત્રણ ભાવના સંયોગથી ૩ ભંગ, ક્ષાયિકભાવની સાથે ક્ષાપશમિક આદિ બે ભાવના સંગથી ૨ ભંગ તથા ક્ષાયોપશમિકની સાથે પરિણામિક ભાવના સંયોગથી એક ભંગ બને છે આ રીતે બ્રિકસંગી કુલ ૧૦ ભંગ બને છે.
આ પ્રકારે આ ભંગેનું સામાન્ય કથન કરીને હવે સૂત્રકાર દરેક ભંગના સ્વરૂપનું વિવેચન કરે છે
प्रश्न-(कयरे से णामे उदइयउत्रसमियनिष्फण्णे?) 3 मापन! मी यि અને ઔપશમિક ભાવના સંયોગથી જે સાન્નિપાતિક ભાવ રૂપ ભંગ નિષ્પન્ન થાય છે, તેનું સ્વરૂપ કેવું હોય છે?