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भनुयोगदारसूत्रे प्रकृतमुपसंहरन्नाह-स एष क्षायोपशमनिष्पन्न इति । क्षायोपचमिको भावः प्ररूपित इति सूचयितुमाह-स एष क्षायोपशमिक इति ॥सू० १५५॥ पूर्वधारी ( खओवसमिए आव चउदस पुव्वी) क्षायोपशमिक यावत् चतुर्दशपूर्वधारी (खओवसमिए गणी) क्षायोपशमिक गणी खाओव. समिए वायए) क्षायोपशमिकवाचक ( से तं खोवसम्मनिप्पण्णे ) इसप्रकार ये सब क्षायोपशम निष्पन्न हैं ( से तं खओवसमिए) यह वह क्षायोपशमिक है। - ___ भावार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकारने क्षायोपशमिक क्या है इसका विवेचन किया है। उन्होंने कहा है कि एक तोक्षायोपशम ही क्षायोपशमिक है और दूसरा क्षयोपशम निष्पन्न क्षायोपशमिक है। इनमें चार घातिक कर्मों का क्षय उपलक्षित जो उपशम है वह क्षायोपशमिक है। क्षायोपशमिक ज्ञान के आवारक जो कर्म है उनमें सर्वघातिस्पर्द्धक (कांश) और देशघातिस्पर्द्धक ये दोनों प्रकार के स्पर्द्धक पाये जाते हैं। इसलिये उनका क्षयोपशम होता है। नव नोकषायों में केवल देशघा. तिस्पर्द्धक ही पाये जाते हैं इसलिये उनका क्षयोपशम नहीं होता केवल ज्ञानावरण आदि प्रकृतियों में केवल सर्वघातिस्पर्द्धक पाये जाते हैं क्षयोपशम टिपारी, (खओवसमिए णवपुव्वी) यापशभिः न१' पारीया as (खओवसमिए जाव चउद्दसपुव्वी) क्षाया५शभिः यो धारी ५-तना ७, (खोवसमिए गणी) क्षाया५शभि04, (खओयसमिए वायए) भने माया५शभि पाय (से तं खओवसमनिप्फण्णे) मा मया क्षाया. पशभनिन सा छे. (से तं खओवसमिए) क्षाया५शभिनु 40 प्रा२नु ११३५ छे.
ભાવાર્થ-આ સૂત્ર દ્વારા સૂત્રકારે લાપશમિક ભાવના સ્વરૂપનું વિવેચન કર્યું છે તેમાં તેમણે એવું પ્રતિપાદન કર્યું છે કે એક તે ક્ષાપશમ જ ક્ષાપશમિક છે અને બીજુ ક્ષયે પશમનિષ્પન્ન લાપશમિક છે. ચાર ઘાતિયા કર્મોનો ક્ષયથી ઉપલક્ષિત જે ઉપશમ છે, તેનું નામ ક્ષાપશમિક છે. સાપશમિક જ્ઞાનનું આવરણ કરનારા જે કર્મો છે તેમાં સર્વઘાતિ પદ્ધક અને દેશવાતિ સ્પદ્ધકે રૂ૫ બન્ને પ્રકારના સ્પદ્ધકે સદૂભાવ રહે છે,