________________
मनुयोगद्वार सैष । रजउदाता: दिक्षु रजसामुत्थानानि। चन्द्रोपरागाः सूर्योपरागा:सूर्याणां राहुमहणानि । अर्धतृतीयद्वीपसमुद्रवर्तिनोऽनेके चन्द्रसूर्याः सन्ति, अतः 'चन्द्रोपरागाः सूर्योपरागा' इति पदद्वयं बहुत्वेन निर्दिष्टम् । तया-चन्द्रपरिवेषा। सूर्यपरिवेषाः-चन्द्रसर्ययोः परितोवलयाकारपुदलपरिणामाः । प्रविचन्द्रः प्रतिसूर्य:उत्पातसूचकं द्वितीयचन्द्रादित्यदर्शनम् । इन्द्रधनुः नभसि नीलपीतादिवर्णविधि धनुराकारं यद् दृश्यते तदिन्द्रधनुरित्युच्यते । इदं च लोके प्रसिद्धम्।. उदकमत्स्याः इन्द्रधनुः खण्डानि। कपिहसितानि यदा कदाचिन्नमसि जायमाना अन्युप्रशब्दाः श्रूयन्ते, त एव कपिहसितान्युच्यन्ते। अमोघाः सूर्यस्य उदयास्तसमये तत्किरणैः समुत्पद्यमाना रेखाविशेषाः । वर्षाणि भरतादीनि। वर्षधराकुहरा-(रयुग्धाया) रज उद्घात-दिशाओं में धूलि का उड़ना, (चंदो. वराग-चन्द्रोपराग-चंद्रग्रहण (सूरोवरागा) सूर्यग्रहण (चंदपरिवेसा, खर. परिवेसा) चन्द्र परिवेष-चन्द्रमा की चारों ओर गोलाकार में परिणत हुए पुद्गल परमाणुओं का चक्रवाल (गोल मंडल) सूर्य की चारों ओर गोल चूड़ी के जैसे आकार में परिणत हुए पुद्गल परमाणुओं का चक्र. पाल (पडिचंदा) प्रतिचंद्र (पडिसूरा) प्रतिसूर्य-उत्पात सूचक वित्तीय चंद्र की ओर सूर्यका दिखलाई पड़ना (इंदधणू) इन्द्रधनुष-आकाश में नीलपीत आदि वर्ण विशिष्ट जो धनुष के आकार दिखलाई देता है वह कि जिसे भाषा में "मदान" कहते हैं (उदगमच्छा) उदक मत्स्य इन्द्र धनुष के खंड (कविहसिया) कपिहसित-यदा कदाचित्-जब कभी आकाश में सुनाई पड़नेवाले अत्युग्रशन्द (अमोहा) अमोध सूर्य के उदय और अस्त के समय में उसकी किरणोंद्वारा उत्पन्न रेखा विशेष-(वासा) भरत
(रयुग्घाया) यात (हशामा धूण 34 ) (चंदोवराग) यन्द्री५२।। (यन्द्र. 969), (सूरोवराग) सूर्य , (चंदपरिवेसा, सूरपरिवेसा) यन्द्र५श्वेिष (यन्दने ફરતું ગોળાકારમાં પરિણત થયેલા પુદ્ગલપરમાણુઓનું ગોળાકારનું મંડળ), સપરિવેષ (સૂર્યની આસપાસ ચારે દિશામાં ગોળ ચૂડલીના આકારે પરિણત थयेसो पुरस५२भार मानु नु भ3 (पडिचंद) प्रतियन्द्र (Guld सूयमान यन्द्रनुपायु), (पडिसूरा) प्रतिसूर्य (G.यात सूय भी स्य हमा), (इंदधणू) मेवधनुष (Aशमा यामासामा २ स२00 मही हभाय छ त), (उद्गमच्छा) Ges म२५ (मेघधनुष्याना ५७), (कविहसिया) पिसित ( शमाथी यारे सण. ति3 181), (अमोहा) અમલ (સૂર્યોદય અને સૂર્યાસ્ત વખતે સૂર્યના કિરણે દ્વારા ઉત્પન્ન થતી