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अनुबोगचन्द्रिका टोका सूत्र १५४ क्षायिकभावनिरूपणम्
७१ यस स तथा, एवं-क्षीणश्रुतावधिमनःपर्यवकेवलज्ञानावरणरूपाणि चत्वारि पदानि बोध्यानि । तथा-अनावरणः-अविद्यमानमावरणं यस्य त तथा, विमलप्रकाशवत्वात् निर्मलाकाशस्थितचन्द्रवत् । निरावरणः-निर्गतम् आवरणं यस्य स तथा समस्तावरण
ज्ञानावरण कर्म पांच प्रकार का है
१ मति ज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यवज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण जीव जब अहंत जिन केवली बनता है, तब उसका सम्पूर्ण ज्ञानावरणकर्म नष्ट हो जाता है-इसलिये (वीण आभिणिबोहियणाणावरणे) क्षीण हो गया है आभिनिबोधिक शनावरण जिप्तका (खीणसुयणाणावरणे) क्षीण हो गया है श्रुतज्ञानावरण कम जिसका (खीणओहियणाणावरणे) क्षीण हो गया है अवधि ज्ञानावरण कर्म जिसका (खीण मणपज्जवणाणावरणे) क्षीण हो गया है मनापर्यवज्ञानावरण जिसका, (खोणकेवलणाणावरणे) क्षीण हो गया है केवलज्ञानावरण जिसका, ऐसा होने के कारण क्षीणाभिनियोधिक ज्ञानावरण, क्षीण श्रतज्ञानावरण, क्षीणावधिज्ञानावरण, क्षीण मन:पर्यव. ज्ञानावरण, क्षीण केवलज्ञानावरण ये भिन्न २ नाम समस्त ज्ञानायरजोय कर्म के क्षय हो जाने की अपेक्षा से निष्पन्न हो जाते हैं। इसी प्रकार से (अणावरणे निरावरणे, खीणावरणे, णाणावरणिज्जकम्मविप्पमुक्के) जब समस्त आवरण कर्म नष्ट हो जाता है तब वह आत्मा
જ્ઞાનાવરણ કમ પાંચ પ્રકારનાં છે
(१) भतिज्ञाना१२९], (२) श्रु1साना१२९५, (3) सपधिज्ञाना१२, (४) मन:५१ज्ञाना१२५ भने (५) अज्ञानापर.
જીવ જ્યારે અહંત જિન કેવથી બને છે, ત્યારે તેને સમસ્ત જ્ઞાનાવ२५ भनि नाश 48 mय छ, तथा ३ (खीण आभिणियों हिय णाणावरणे) क्षी भामिनिमाधि ज्ञाना२शुपाणी, (खीण सुयणाणावरणे) क्षीण तज्ञाना१२६ भवानी, (खीण ओहियण गावरणे) की अधिज्ञाना१२५ भदाणा, (खीण मणपज्जवणाणावरणे) क्षीय मन:पय ज्ञाना१२५ भदाणे भने (खीण केवल. णाणावरणे) क्षी नाव२५ भवानी 25 जय छे ते धारणे समस्त જ્ઞાનાવરણીય કર્મોને ક્ષય થઈ જવાને કારણે તેના આ પાંચ નામો નિષ્પન थाय छे. (१) क्षीमिनिमाधिशाना१२५. (२) क्षीणतज्ञानाव२५, (3) सीधा विज्ञानावर, (४) क्षा मनःप ज्ञाना१२५ भने (५) क्षी ज्ञाना१र१ मे प्रमाणे (अणावरणे, निरावरणे, खीणावरणे, णाणावरणिजम्मविप्पमुक्के) यारे समस्त मा१२९ मना नाश २७ तय छे त्यारे ते मामा