Book Title: Anuyogdwar Sutra Part 01
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 735
________________ अनुयोगद्वार क्षयोपशम-क्षयोपशम निष्पन्नेति द्विविधः । तत्र - क्षगोपशमः - केवलज्ञानप्रतिबन्धकव ज्ञानावरणीयदर्शनावरणीय मोहनीयान्तरायरूपमा विकर्म चतुष्टयस्य क्षयोपशमोबोध्यः । अयं भावः - : - विवक्षितज्ञानादिगुणविघातकस्य कर्मणः उदयप्राप्तस्य क्षयः= सर्वथाऽपगमः, अनुदीर्णस्य तस्यैव कर्मण उपशमः = विपाकत उदयाभावः । ततश्व क्षयोपलक्षितः उपशम इति । ननु औपशमिके भावे उदयप्राप्तस्य कर्मणः सर्वथा ७२२ उत्तर- खओवसमिए दुविहे पण्णत्ते) क्षयोपशमिक दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। (तं जहा ) जैसे- खओवसमे य खओवसमनिष्फdot) एक क्षयोपशमरूप क्षायोपशमिक और दूसरा क्षयोपशमनिष्पन क्षायोपशमिक | ( से कि त खओवस मे ? ) हे भदन्त ! वह क्षायोपशम क्या है । उत्तर- (खओवसमे चउन्हें घाइकम्माणं खओवस मेगं ) केवल ज्ञान के प्रतिबन्धक ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय मोहनीय और अन्तराय इन चार घातिक कर्मों का जो क्षयोपशम है वह क्षायोपशम है। इसका तात्पर्य यह है कि विवक्षित ज्ञानादिक गुणों को घात करने वाले उदय प्राप्त कर्म का क्षय सर्वथा अपगम और अनुदीर्ण उसी कर्म का उपशम - विपाक की अपेक्षा से उदयाभाव इस प्रकार क्षय से उपलक्षित जी उपशम है वही क्षयोपशम है । शंका- औपशमिक भाव में उदय प्राप्त कर्मका सर्वधा क्षय है और उत्तर- (खओवसमिए दुविहे पण्णत्ते, तंजहा ) क्षायोपशमिक भावना नीथे प्रभाबे मे प्रा२४ छे - ( खओवस मे य खओवसमनिष्फण्णे य ) (1) ક્ષયાપશમ રૂપ ક્ષાયેાપશમિક અને (ર) ક્ષયે પશમ નિષ્પન્ન ક્ષાયેાપશમિક. - प्रश्न – (से किं तं खओवसमे ? ) हे भगवन् ! ते क्षायोपशमनु स्व३५ ठेवु छे ? उत्तर- (खओवसमे च उण्डं बाइकम्माणं खओवस मेणं) त्रणज्ञानना प्रतिषષક-કેવળજ્ઞાનને પ્રકટ થતું રોકનારાં-જ્ઞાનાવરણીય, દનાવરણીય, માહનીય અને અન્તરાય, આ ચાર ક્રાતિયા ક્રર્માના જે ક્ષયેાપશમ રૂપ ભાવ છે, તેને ક્ષાપશમ કહે છે. આ કથનનું તાત્પર્ય નીચે પ્રમાણે છે-વિક્ષિત જ્ઞાનાદિક ગુણાના ઘાત કરનારા ઉદય પ્રાપ્ત ક્રર્માંના ક્ષય (સર્વથા અપગમ) અને અનુદીણું એજ કર્મીના ઉપશમ (વિપાકની અપેક્ષાએ ઉદયાભાવ), આ પ્રકારના ક્ષયથી ઉપલક્ષિત જે ઉપશમ છે, તેનુ' નામ જ સાપશમ છે. શકા—ઔપશમિક ભાવમાં ઉદ્દયપ્રાપ્ત ક`ના સત્રથા ક્ષય થાય છે અને

Loading...

Page Navigation
1 ... 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771 772 773 774 775 776 777 778 779 780 781 782 783 784 785 786 787 788 789 790 791 792 793 794 795 796 797 798 799 800 801 802 803 804 805 806 807 808 809 810 811 812 813 814 815 816 817 818 819 820 821 822 823 824 825 826 827 828 829 830 831 832 833 834 835 836 837 838 839 840 841 842 843 844 845 846 847 848 849 850 851 852 853 854 855 856 857 858 859 860 861