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योगा टीका सूत्र १३६ अर्थपत्रप्ररूपणादीनां निरूपणम्
बथा सन्ति तथा कालानुपूर्व्यामपि संग्रहमते भणितव्यानि । नवरं=विशेषस्त्वयमेत्रयदत्र स्थित्यभिलापः कर्त्तव्यः । अयं भावः - क्षेत्रानुपूर्व्या "तिपरसोगाढे आणुपुन्त्री, चउप्परसोगाढे आणुपुच्ची" इत्याद्युक्तम्, एमिड- "तिसमयडिए भाजुपुच्ची, चउसमयहिए आणुपुथ्वी" इत्यादि वक्तव्यमिति । क्षेत्रानुपूर्वोत् किवइवधिवक्तव्यम् ? इत्याह- ' जाव से तं' इति । यावत्स एषोऽनुगम इति पर्यन्तं क्षेत्रानुपूर्वीत्रदेव वक्तव्यमिति । प्रकृतमुपसंहरन्नाह - ' से तं संगहरू ' इत्यादि । सैषा संग्रहनयसम्मता अनौपनिधिको कालानुपूर्वी ते ॥ मु० १३६ ।।
उत्तर -- संग्रहनय मान्य इन पांचों द्वारों का कथन जिस प्रकार का क्षेत्रानुपूत्र में किया गया है उसी प्रकार का कथन संग्रहनयसंमत इन पांचों द्वारों को इस कालानुपूर्वी में भी जानना चाहिये । (णवरं ठिई अभिलावी जाव से तं अणुग मे ) परन्तु विशेषता केवल इतनी है कि क्षेत्रानुपूर्वी में “त्रिप्रदेशावगाढ आनुपूर्वी चतुष्यदेशावगाढ आनुपूर्वी " इस प्रकार से भंगों का आलाप करने में आया है तब यहां पर " ति समय आणुपुवी च समयहिए आणुपुच्ची " इत्यादि प्रकार से मंगों का आलाप करना चाहिये । क्षेशनुपूर्वी की तरह इन आनुपूर्वी आदि भंगों का संग्रह कहां तक करना चाहिये इसके लिये सुत्रकार कः हते हैं कि " से तं अणुगमे" इस प्रकार यह क्षेत्रानुपूर्वी संबन्धी अनुगम का स्वरूप है " यहां तक संग्रह करना चाहिये । (सेतं संगहस्स अगोवणिहिया कालानुपुच्ची ) इस प्रकार यह संग्रहनय संमत अनौप निधिकी कालानुपूर्वी है।
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જેવું કથન કરવામાં આવ્યુ છે, એવુ જ કથન સંગ્રહનયસ'મત આ કાલાनुपूर्वीना पाये द्वाराना विषयमा पशु सम सेवु (णवरं ठिई अभिलाबो जाब से तं अणुगमे) परन्तु क्षेत्रानुपूर्वीना उथन करतां या उथनमां नीचे પ્રમાણે વિશિષ્ટતા રહેલી છે-ક્ષેત્રાનુપૂર્વીના પ્રભુમાં ત્રિપ્રદેશાવગાઢ માનુી, ચતુ પ્રદેશાવગાઢ આનુપૂર્વી,'( આ પ્રકારે ભગનું કથન કરવામાં भाष्यु ं छे, त्यारै स·अनयस'भत मानुपूर्वीभां "तिसमयइिए आणुपुब्बी, मइ आणुपुन्त्री, ” इत्यादि प्रहारे लगोनु' स्थन ' लेहो क्षेत्रानुपूवांना अरगत पाउनु उथन, " से तं अणुग मे " " या प्रभारनु અનુગમનુ સ્વરૂપ છે. મા सूत्रपाठ पर्यन्त र लेये. (से तं संगइरस भगोवणिहिया काळाणुपुथ्वी) मा प्रहार सभनयस'भत मनोपनिषिठी કાલાનુપૂર્વીનું સ્વરૂપ છે.