________________
अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४२ भावानुपूर्वीनिरूपणम्
६२३
तथा - इच्छाकाराद्युपसम्पदन्तानां पदानामन्योऽन्याभ्यासो द्विरूपोनः - आद्यन्तपदद्वयविवक्षामपहाय ये भङ्गास्ते - अनानुपूर्वी बोध्याः । प्रकृतमुपसंहरन्नाह - सैषा सामाचर्यानुपूर्वीति ॥ १४१ ॥
अथ भावानुपूर्वीमाह—
मूत्रम् - से किं तं भावाणुपुथ्वी ? भावाणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता, तं जहा - पुव्वाणुपुच्ची पच्छाणुपुव्वी अणाणुपुव्वी । से किं तं पुव्वाणुपुवी ? पुवाणुपुवी - उदए १, उवसमिए २, खाइए ३, खओवसमिए४, पारिणामिए५, संनिवाइए६, । से तं पुव्वाणुपुथ्वी । से किं तं पच्छाणुपुत्री ? पच्छाणुपुत्री संनिवाइए जाव उदइए । से तं पच्छा पुव्वी । से किं तं अणाणुपुथ्वी ? अणाअनानुपूर्वी क्या है ? (अणाणुपुब्बी) अनानुपूर्वी सामाचारी इस प्रकार से है (एयाए चेव एगोझ्याए उगुत्तरियाए दस गच्छनयाए सेठीए अण्णमन्नभासो दुखवूणो ) इच्छाकार से लेकर उपसंपदा तक के दश पदों का एक एक अधिक संख्या कर के परस्पर में गुणा करना चाहिये और इस प्रकार से जो राशि उत्पन्न होवे उसमें से आदि अन्त के भंग द्वय की विवक्षा को कम कर देना चाहिये । अन्त में जितने भंग बचते हैं उन भंगात्मक यह अनानुपूर्वी सामाचारी होती है। (से तं सामायारी आणुपुत्री) इस प्रकार यह सामाचारी आनुपूर्वी है ॥ ० १४१ ॥
प्रश्न - ( से कि त अणाणुपुब्बी) हे भगवन् ! अनानुपूर्वी साभायारीनु स्व३५ ठेवु छे ?
उत्तर- (अणाणुपुत्री) अनानुपूर्वी साभायारीनु स्व३५ आ अारनु छे(एयाए चेr एगइया एगुत्तरियाए दसगच्छगयाए सेढीए अण्णमन्नभासो दुरूवृणो) ઇચ્છાકારથી લઈને ઉપસ'પદા પન્તના દસ પદોને એક એક અધિક સ’ખ્યા લઈને પરસ્પરમાં ગુડ્ડાકાર કરવા જોઇએ આ પ્રકારે જે રાશિ પ્રાપ્ત થાય તેમાંથી અદિ અને અન્તના બે ભ`ગેાની વિવક્ષા ખાદ કરી નાખવી જોઇએ.
આ છે ભંગા બાદ જતાં જેટલા ભ ંગા ખાકી રહે છે તેટલા ભંગારૂપ આ अनानुपूरी सामायारी डाय छे. (से तं सामायारी आणुपुत्री) साभायारी આનુપૂર્વી નું આ પ્રકારનું સ્વરૂપ છે. સૂ૦૧૪૧૫