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अनुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १४५ द्विनामादिस्वरूपनिरूपणम् ६४३ जीवनामाप्यनेकविधम् । जीवाजीवेति द्वाभ्यां नामभ्यामेव विवक्षितसमस्तपदार्थानां संग्रहाद् द्विनामेत्युच्यते । पुनरेतदेव प्रकारान्तरेणाह-अथवा द्विनाम द्विविधं प्रज्ञ. सम्-अविशेषितं च विशेषितं च । तत्र-अविशेषितं द्रव्यम् । विशेषितं-जीवद्रव्यमजीवद्रव्यं च । प्रत्ये कमिदमविशेषितविशेषितभेदात् पुनर्भेदान्तराचानेकप्रकारक भवतीति मूलादेव विज्ञेयम् । सौगम्याच मूलस्य व्याख्यान क्रियते । अत्रेदंबोध्यम्है। (तं जहा) जैसे (देवदत्तो जगदत्तो विण्हुदत्तो सोमदत्तो) देवदत्त, यज्ञदत्त, विष्णुदत्त, सोमदत्त आदि । (से किं तं अजीव नामे) वह अजीव नाम क्या है ? (अजीवनामे अणेगविहे पण्णत्ते)
उत्तर- अजीव नाम अनेक प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है (तं जहा) जैसे (घडो, पडो, कडो, रहो) घट, पट, कट, रथ, आदि । (से तं अजीव नामे) यह अजीव नाम है । (महवा दुनामे दुविहे पगत्ते) अथवाद्विनाम दो प्रकार का प्रज्ञप्त हुआ है। (तं जहा) जैसे (विसेसिए य अविसेसिए य) विशेषित और अविशेषित (अविसेसिए दव्वे विसेसिए जीवदव्वे अजीवव्वे य) अविशेषित द्रव्य कहलाता है और विशेषित उसके भेद कहलाते हैं । द्रव्य ऐसा नाम अविशेषित द्विनाम है। और द्रव्य दो प्रकार का होता है-१ जीव द्रव्य
और दूसरा अजीव द्रव्य ऐसा नाम विशेषित द्वि नाम है। इनमें जीव द्रव्य और अजीव द्रव्य ये अविशेषित और विशेषित के भेद से तथा और भी भेदान्तरों से अनेक प्रकार के हो जाते हैं यह यात मूल से
प्रश्न-(से कि त अजीवनामे?) 3 मापन्! नाम से शु
उत्तर-(अजोवनामे अणेगविहे पण्णत्ते) मनामना भने प्र हा छे. (त'जहा) २ ४ (घडो, पडो, कडो, रहो) ५८ ५८, ४८ (२४), २५ पोरे (से त अजीवनामे) मा ५२नुं अपनाम डाय छे. (अहवा दुनामे दुविहे पण्णत्ते) अथवा विनामना २ २ ४ा छ. (तजहा) भ .... (विसेसिए य अविसेसिए य) (१) विशषित म२ (२) भविशषित (अविसेसिप दव्वे, विसेसिए जोवदव्वे अजीवदवे य) द्रव्यने विशेषित ३५ वाय मन द्रव्यमा ७१ १ ३५ होने विशेषित उपाय छे. 'न्य' ने નામ અવિશેષિત દ્વિનામ છે. દ્રવ્ય બે પ્રકારનું હોય છે-(૧) જીવ દ્રવ્ય અને (૨) અછવદ્રવ્ય આ જીવદ્રવ્ય અને અજીવદ્રવ્ય રૂપ નામને વિશેષિત હિનામ કહે છે. વળી જીવ દ્રવ્ય અને અજીવ દ્રવ્યના અવિશેષિત અને અવિશેષિત નામના બે ભેદ તથા બીજા પણ ઘણા ભેદ પડતા હોવાથી તે દ્રવ્યના અનેક પ્રકાર હોય છે, આ વાત મૂળ સૂત્રમાંથી જ જાણી લેવી જેમ કે