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मानुयोगचन्द्रिका टीका सूत्र १२३ ऊर्यलोकक्षेत्रानुपूर्वीनिरूपणम् ५३७ म्यासे यावन्तो भङ्गका भवन्ति, ते आघात विवक्षारहिता भला बोध्याः सम्पतिऔपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी प्रकारत्रयेण प्रदर्शयितुमाह-'अहवा' इत्यादि । अथवाबोपनिषिकीक्षेत्रानुपूर्वी पूर्वानुपादिभेदैखिविधा विज्ञेया। तत्र-पूर्वानुपूर्वी पित की जाती है उसमें सबसे प्रथम में १ संख्या रखी जाती है बाद में एक २ की उत्तरोत्तर वृद्धि होती चली जोती इस प्रकार की वृद्धि यहां १५ संख्या तक होती है ! फिर इनमें परस्पर में गुणा किया जाता है। जो गुणन फल आता है उसमें आदि अन्त के दो भंग कम कर दिये जाते हैं। क्योंकी आदिका भग आनुपूर्वी में आजाता है और अन्तका भा पश्चानुपूर्वी में आजाता है। इसलिये अनानुपूर्वी में आदि अंत के दो भंग छोडने को कहा है। इस प्रकार (से ण अणाणुपुव्वी) यह अवंलोक संबन्धी अनानुपूर्वी बन जाती है। (अहवा) अथवा-ओव. णिहिया-खेत्ताणुपुव्वी तिविहा पण्णत्ता) औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी-तीन प्रकार की प्रज्ञप्त हुई है । (तं जहा) जैसा-(पुव्वाणुपुत्वी, पच्छाणुपुब्धी, अणाणुपुव्वी) पूर्वानुपूवीं पश्चानुपूर्वी और अनानुपूर्वी (से किं तं पुन्वाणुपुब्धी ) पुर्वानुपूर्वी क्या है ?
उत्तर-(पुव्वाणुपुन्वी) पूर्वानुपूर्वी इस प्रकार से है-एगपएसोगाने दुप्पएसोगाढे दसपएसोगाढे संखिज्जपएसोगादे जाव असंखिज्जपएसो પહેલાં એક સંખ્યા રાખવામાં આવે છે, ત્યારબાદ ઉત્તરોઉત્તર એક એકની વૃદ્ધિ થતી જાય છે. આ પ્રકારની વૃદ્ધિ અહીં ૧૫ સંખ્યા સુધી કરાય છે. ત્યાર બાદ તેમાં પરસ્પરને ગુણાકાર આવે છે. જે ગુણનફળ આવે તેમાંથી આદિને એક અને અન્યને એક એમ બે ભંગ બાદ કરવામાં આવે છે. કેમકે-આદિને ભંગ આનુવી માં આવી જાય છે, અને અંતનો ભંગ પશ્ચાનુપૂર્વમાં આવી જાય છે. તેથી અનાનુપૂર્વીમાં આદિ અને सतना मेम RAM छानु हां छे. (से गं अणाणुपुव्वी) मा गरे Baats समधी अनानुभूती' मनी नय छे. (अहवा) अथवा-(ओवणिहिया. खेत्ताणुपुत्वी तिविहा पण्णत्ता) भोपनिधिती क्षेत्रानुभूती ३ ४२नी ४00. (जहा) ते ५४१२॥ नीय प्रभाव छ-(पुव्वाणुपुव्वी, पच्छाणुपुव्वी, षणाणुपुव्वी) (१) पूर्वानुभूती', (२) ५वानुषी माने (3) मनानुषी
प्रश्न-(से किं तं पुव्वाणुपुणी) मापन् ! पूर्वानुमान १३५ है ।
उत्तर-(पुव्वाणुपुव्वी) कानुनी मा प्रा२नी छे. (एगपएसोगाढे, दुप्प एसोगाढे, दसपएसोगादे, संखिग्जएएसोगाढ़े जाव असंखिजपएसोगाडे) ,
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