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अनुयोगद्वार
पूर्वीत्वमनुभवेत्, ततोऽन्तरमेव न स्यात् । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य तु नास्त्यन्तरम्, त्रिसमय स्थितिकद्रव्याणां लोके सर्वदा सद्भावादिति । तथा - नैगमव्यवहारसम्म - वानामनानुपूर्वीद्रव्याणां कालतः कियच्चिरमन्तरं भवति १ इति प्रश्नः । उत्तरयतिएकं द्रव्यं प्रतीत्य जघन्येन द्वौ समयौ अन्तरम्, उत्कर्षतः असंख्येयं कालम् । नानाद्रव्याणि प्रतीत्य तु नास्ति अन्तरम् । अयं भावः एकं द्रव्यं प्रतीत्य एकसमयसमय तक भी रहता है तो उस समय वह उस स्थिति में भी आनुपूर्वी स्वका अनुभवन करता है और इस स्थिति में वहां अन्तर ही नहीं आता है । नाना द्रव्यों की अपेक्षा से जो अन्तर नहीं कहा है उसका कारण यह है कि त्रिसमय की स्थितिवाले कोई न कोई द्रव्य लोक में सर्वदा रहते ही हैं।
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प्रश्न – (णेगमववहाराणं अणाणुपुञ्चीदव्वाणं अंतरं कालओ के afari होई) नैगमव्यवहारनयसंपत अनानुपूर्वीद्रव्यों का अन्तर का ल की अपेक्षा कितनेक समय का होता है ?
उत्तर- ( एगं दत्र पडुच्च ) एक द्रव्य की अपेक्षा लेकर (जहम्ने णं) जघन्य से (दो समया) दो समय का और (उक्को सेणं) उत्कृष्ट से (असंखेज्जं कालं ) असंख्यातकाल का अन्तर होता है । ( णाणादव्वाइं पटुच्च णत्थि अंतरं) तथा नानोद्रव्यों की अपेक्षा करके अन्तर नहीं
કરતાં અધિક સમય સુધી પણ રહે તે તે પરિસ્થિતિમાં પણ ત્યારે તે આનુપૂર્વીશ્વને અનુભવ કરે છે, અને આ સ્થિતિમાં ત્યાં અંતર જ સભવી શકતું નથી વિવિધ દ્રવ્યેની અપેક્ષાએ અંતર (વિરહકાળ)ના અભાવ જ કહેવાનું કારણ એ છે કે ત્રણ સમયની સ્થિતિવાળાં કાઈને કંઈ દ્રવ્ય લેકમાં સવ દા માજુદ જ રહે છે.
प्रश्न- (गमववहाराणं अणाणुपुव्वी दव्वाणं अंतरं कालओ केवच्चिरं होई?) નગમવ્યવહાર નયસ'મત અનાનુપૂર્વી દ્રવ્યેનું અંતર કાળની અપેક્ષાએ કેટલા સમયનું હાય છે ?
उत्तर- (एगं दव्वं पहुच्च) थे! मनानुपूर्वी द्रव्यनी अपेक्षाओ विचार ४२वामां आवे तो (जत्रेण दो समया) धन्य अन्तर (गोछामां मोछो विराज) में समयनुं (उक्को सेणं असंखेज्जं कालं) उत्कृष्ट अ ंतर (वधारैभां धारे विरहा) असण्यात अजनुं होय . ( णाणादव्बाई पडुच्च स्थि अंतरं) भने द्रव्योनी अपेक्षा विचार करवामां भावे, तो अ ंतर (विरह'द्वाज) होतु' नथी या उथननो भाषार्थ नाथ प्रभा - सभयनी स्थिति