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अनुयोगद्वार -नैगमव्यवहारबो११,
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तत्र खलु या सा अनौपनिधिकी साद्विविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथासंग्रहस्य २ च ।। सू० १०० ॥
टीका--' से किं तं ' इत्यादि
●पाख्या पूर्ववद् बोध्या । सू० १००॥
क्षेत्रानुपूर्वी, दूसरी अनोपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी (तस्थ णं जा सा ओषणिहियासा ठप्पा) इनमें जो औपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी है वह अल्प विषयवाली होने के कारण अर्थात् उसका विषय विशेष विवेचना करने के योग्य न होने से - इस समय व्याख्या नहीं की जाती है। तात्पर्य कहने का यह है कि प्रथम नंबर की होने के कारण सूत्रकार को सबसे पहिले औपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वी का विवेचन करना कर्तव्य है । परन्तु ऐसा न करके वे पहिले अनौपनिधि की क्षेत्रानुपूर्वीका जो विवेचन करेंगे उसका कारण यह है कि औपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी को विषय विशेष बक्तव्य के योग्य नहीं है। क्यों कि उसका विषय अल्प है । इसलिये (तस्थणं जा सा अणोवणिहिया सा दुबिहा पण्णत्ता) इनदोनों अनुपूर्वियों में जो अनोपनिधिकी क्षेत्रानुपूर्वी है उसका विस्तृत विवेचन करने के अभिप्राय से सूत्रकार कहते हैं कि वह दो प्रकार की कही गई है। (तं जहा ) वे उसके प्रकार ये हैं - ( गमववहाराणं १ संगहस्स २) एक श्रोपनिधिडी क्षेत्रानुपूर्वी, अने (२) अनौपनिधिठी क्षेत्रानुपूर्वी (वत्थणं जा बोणिहिया वा ठप्पा) तेमांथी ने सोपनिधिठी क्षेत्रानुपूर्वी छे ते प વિષયવાળી હવાને કારણે એટલે કે તેના વિષય, વિશેષ વિવેચન કરવા યાગ્ય નહી. હાવાને કારણે, તેનું નિરૂપણ સૂત્રકાર આ સૂત્રમાં કરશે નહી* પણ પાછળના સૂત્રમાં કરશે. જો કે ક્રમ અનુસાર તે તે પહેલી ડેાવાથી તેનુ નિરૂપણ પહેલાં થવુ જોઇએ. પરન્તુ સૂત્રકારે અહી અનૌપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વી'નુ' નિરૂપણ પહેલાં કર્યુ છે કારણ કે ઔપનિધિકી ક્ષેત્રાનુપૂર્વીને વિષય અલ્પ હાવાથી તેનુ વિશેષ વક્તવ્ય કરવાનું નથી, પરન્તુ અનૌપનિષિકી ક્ષેત્રાનુકૂ ની”ના વિષય વિસ્તૃત વિવેચન કરવા ચૈગ્ય છે. તેથી સૂત્રકાર અહી પહેલાં कानोपनिधिठी द्रव्यानुपूर्वीनु नि छे - ( तत्थ ण' जा वा अणोवणिहिया या दुविहा पण्णत्ता) ते मन्ने मानुपूर्वी सभांनी ने मनोपनिधिमी क्षेत्रानुपूर्वी छेतेना मेरा छे. (तंजा) ते अहारी नीचे प्रभाषे(गमववहाराण, संगहरन ) ( 1 ) नैगमव्यवहार नयभत अनोपनिधिमी क्षेत्रा