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अनुयोगचन्द्रिकाठीका स्त्र ११ मनुगमस्वरूपनिरूपणम् काय अन्तरं मागो भावश्चेति । अल्पबहुत्वरूपोऽनुगमस्तु संग्रहनयमते नास्ति, बस्य नयस्य सामान्यवादित्वात् । सम्पति सत्पदप्ररूपणतां प्ररूपयति-'संगहस्स मापुनी दवाई कि अत्वि नत्यि' इत्यादि । संग्रहसम्मतानि आनुपूर्वीद्रव्याणि
उत्तर- (अणुगमे अट्ठविहे पण्णत्ते) अनुगम आठ प्रकार का कहा गया है (तं जहा) वे प्रकार ये हैं-(संतपयपरूवणया दव्यमाणंच खितं फुमणा य, कालोय अंतरं भाग भावे अपायहु नस्थि ) सप. दप्ररूपणता १, द्रव्यप्रमाण-२, क्षेत्र ३, सर्शना ४, काल ५, अन्तर ६, भाग७ ओर भाव८ अल्पबहुत्व अनुगम का प्रकार यहां नहीं है क्योकि संग्रहनय सामान्यवादी है। “सगहस्सआणुपुत्रीदव्याई कि अस्थि णस्थि णियमा अस्थि एवं दोन्नि वि" सस्पदप्ररूपणता के निमित्त मूत्रकार कहते हैं कि इस सत्पद प्ररूपणा में यह प्ररूपित किया जाता है कि जिस प्रकार से शशशृंग आदिपद असदर्थ को विषय करने वाले होते है उस प्रकार से ये आनुपूर्वी आदि पद असदर्थ विषयक नहीं हैं, किन्तु जैसे स्तंभआदि पद स्तंभ रूप अपने वास्तविक अर्थ को विषय करते हैं उसी प्रकार से ये आनुपूर्वी आदिपद भी वास्तविक आनुपूर्वी आदि को विषयक करते हैं, इसलिये (संगहस्स आणुपुब्बीदव्वाइं कि अस्थि ण.
उत्त२-( अणुगमे अढविहे पण्णत्ते ) अनुराम भाउ ४२ शो . (तंजहा) ते प्रा। नीये प्रभारी - (संतपयपरूवणया, वप्पमाणं च वित्तं फुसणा य, कालो य अंतर भाग भावे अप्पाबहु नस्थि) (१) सत्५६५३५यता, (२) द्रव्यमा, (३) क्षेत्र, (४) २५N ना, (५) , (६) अन्त२, (७) ना अने (८) मा. स त्य રૂપ અનુગામને પ્રકાર અહીં નથી, કારણ કે સંગ્રહનય સામાન્યવાદી છે. ( संगहस्स आणुपुब्बीदवाई कि अत्थि णस्थि ? णियमा अस्थि एवं दोन्नि वि) હવે સૂત્રકાર સત્પદપ્રરૂપણુતાનું સ્વરૂપ સમજાવે છે- સત્પદપ્રરૂપણુતામાં એ વાતની પ્રરૂપણા કરવામાં આવે છે કે જે પ્રકારે શશશ્ચંગ (સસલાના શિંગડાં) આદિ પદ અસદર્થ (અવિદ્યમાન પદાર્થ)નું પ્રતિપાદન કરનારા હોય છે, એ પ્રકારે આ આનુપૂવ આદિ પદે અસદર્થનું પ્રતિપાદન કરનારા નથી પરંતુ જેમ સ્તભ આદિ પદે સ્તંભરૂપ પોતાના વાસ્તવિક અર્થને પ્રતિપાદિત કરે છે, એજ પ્રમાણે આનુપૂર્વી આદિ ૫ઇ પણ વાસ્તવિક આનુપૂર્વી આદિ सायतु विधमान पाय नु) प्रतिपादन रे थे. तेथी (संगहस्म भाणपुल्की दव्याई कि अत्थि पत्थि ?) " सनयस मत भानुपूवी द्र०य छेनी "