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रोगन्द्रिका टीका सूत्र ९३ भासमुत्कीर्तनतानिरूपणम् ४१५ पूर्वी च ४, अथवा-अस्ति भानुपूर्वीच अक्तव्यकं च५, अथवा-अस्ति अनानु. पूर्वी व वक्तव्यकं च६, अयन-अस्ति आनुपूर्वीच अनानुपूर्वीच अक्ष्य क १७। एवं सप्त भङ्गाः। सैषा संग्रहस्य भङ्गसमुत्कीर्तनता ।।मू० ९३॥ आनुपुर्वी है. अनानुपूर्वी है ( अहवा-अस्थि माणुपुवीय अवसव्वल्य ) अंपवा ५ भानुपूर्वी हैं अवक्तव्यक है ( अहवा-अस्थि अणाणुपुब्बीय अक्सग्वए य ) अथवा-६ अनानुपूर्ण है अवक्तव्यक है, ( अहवाअस्थि आणुपुरुवीय अणाणुपुरवी अवत्तव्वए य ) अथवा ७ आनुपूर्वी है अमानुपूर्वी है अबक्तव्यक है । ( एवं सत्त भंगा ) इस प्रकार ये साल भंग हैं । ( से तं संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया) इस प्रकार संग्रहनन मान्य भंगसमुत्कीर्तनता है। ___ भावार्य-संग्रहनय मान्य अर्थ पद प्ररूपणता से क्या प्रयोजन सधता है? यह बात सूत्रकार ने इस सूत्रद्वारा स्पष्ट की है। इसमें उन्हों ने भंग समुत्कीर्तनता का प्रयोजन कहा है, इस भंगसमुत्कीर्तनता में मूल में ३ पद हैं १ आनुपूर्वी, २ अनानुपूर्वी और तीसरा अवक्तव्यक । आनुपूर्वी का वाच्यार्थ क्या है ? यह सब पहिले स्पष्ट कर दिया गया है।
( अहवा-अस्थिवाणुपुव्वी य अवत्तब्बए य) 4411 (५) भानुयूपीछे. म. ७०य छे. (अहवा-अत्थि अणाणुपुव्वी य अवत्तव्यए य) अथवा (6) सनातुकी छे, अवतव्य छे. (अहवा-अस्थि आणुपुव्वी य, अणाणुपुब्वी य, अवत्तव्वए य) अथवा (७) भानु पूा छे, अनानुषी छ भने सात २. (एव सत्त भंगी) 1 रे सही मात Hiu (Gel) मने छ. (सेत संगहस्स भंगसमुक्त्तिणया) मा ५२नु सनयस मत मसभुती. નત્તાનું સ્વરૂપ છે.
ભાવાર્થ-સંગ્રહનયસંમત અર્થ પદપ્રરૂપપણુતાનું પ્રજન: આ સૂત્રદ્વાર સૂત્રકારે પ્રકટ કર્યું છે. તેમણે આ સૂત્રમાં એવું પ્રતિપાદન કર્યું છે કે અર્થપદ પ્રરૂપણુતા વડે ભંગસમુત્કીર્તનતા રૂપે પ્રયજન સિદ્ધ થાય છે, આ ભંગસમુદ્ધીતનામાં મૂળ ત્રણ પદ . તે ત્રણ પદ આ પ્રમાણે છે(१) मानुसी, (२) मनानुषी भने (3) अ१४२०५४ भानुभूती माहिती વાગ્યા પહેલાં સ્પષ્ટ કરવામાં આવ્યા છે. આ ત્રણે પદને સ્વતંત્ર રૂપે