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अनुपयोगचन्द्रिका टीका सूत्र४३ लोकोत्तरिकनोआगमतो भावश्रुतनिरूपणम् २०७
'से कि त" इत्यादि
अथ किं तद् लोकोत्तरिक नोआगमता भावश्रुतम ? इति शिष्यप्रश्नः । उत्तरमाह-उत्पन्नज्ञानदर्शनधरैः, उत्पन्ने ज्ञानावरणक्षपणादिप्रकारेण संजाते न तु सहजे ये ज्ञानदर्शने तयोः धारषास्तः, सादिकेवलज्ञान दशनोपयोगयुक्त रित्यर्थः तथा-अतीतप्रत्युत्पन्नानागतज्ञायकः तत्र अतीताः भूतकालिकाः, प्रत्युत्पन्नाःवर्तमान कालिकाः, अनागताः भविष्यत्कालिका अस्तेिषां ज्ञायकास्तैः, तथासर्वज्ञैः सर्वद्रव्यपर्याय जानन्तीति सर्वज्ञास्तैः. सर्वदर्शिमिः केवलदर्शनेन एकेन्द्रियादि सर्व प्रसस्थावरं जगद् द्रष्टुं शीलं येषा ते सवदर्शिनम्तैः, तथा अलास्याकरते हैं-"से किं तं लोउत्तरियं" इत्यादि । ॥ सूत्र ४३ ॥
शब्दार्थः-(से) शिष्य पूछता हैं कि हे भदन्त ! (नोआगमओ) नोआग मको आश्रित करके (तं) पूर्वप्रक्रान्त (लोउत्तरियं भावसुयं किं) लोकोत्तरिक भावभत क्या है ? ___उत्तर-(नेभिगमओ) नोआग की अपेक्षा करके (लोउत्तरिय भावसुयं) लोकोतरिकभावश्रुत इस प्रकार से है- (उप्पण्णणाणदंसणवरेहिं) झाना वरणकर्म के क्षय से उत्पन्न हुए केवरज्ञान और दर्शनावरण कर्म के क्षय केवलदर्शनरूप उपयोग को धारण करनेवाले, (तीयपच्चुप्पण्णमणागयजाणएहिं) अतीत-भूतकालिक प्रत्युत्पन्न-वर्तमान कालिक अनागत-भविष्यत्कालिक पदार्थो को जाननेवाले (सव्वष्णू हिं) समस्त द्रव्यों और उनकी त्रिकालवर्ती पर्यायों के ज्ञाता (सब्बदरिसीहिं) केवलदर्शन से एकेन्द्रियादि समस्त त्रसस्थावर रूप जगत् देखने के
હવે સત્રકાર ને આગમ લકત્તરિક ભાવAતનું નિરૂપણ કરે છે–
"से तं लोउत्तरियं" त्याहि
शहाथ-(से) शिष्य गुरुने सेवा प्रश्न पूछे छे भावन् ! (नोआगमी) नोमाराम मालश्रुतना भी ३५ (त लोउत्तरिय भावमुयं कि) पूर्व प्रस्तुत લેકત્તરિક ભાવકૃતનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(नोआगमओ) नोभारामनी साश्रय न (लोउत्तरियं भावसुर्य) લકાતરિક ભાવશ્રતનું સ્વરૂપ આ પ્રકારનું છે.
"उप्पण्ण णाणदंसणधरेहिं" शान५२५ना क्षयथा 4-1 4 Aur भने शन३५ ७५योगने पा२५ ४२ना२।, 'तीयपचुप्पणमणामयजाणएहि" wala (ensilas), प्रत्युत्पन्न (तभान silies). माने मनात (alpurtels पहानि ना२, (सव्वगृहि) समस्त द्रव्यो भने तेमनी मिती' पर्याय साता (सम्बदरिसीहिं) पण शनया मेन्द्रियाः समस्त भने स्था१२३५