________________
२२२
अनुयोगदारको अचित्तद्रव्यसन्धं निरूपयनि
मूलम्--से कि तं अचित्ते दव्वखंधे ? अचित्त द वखधे अणेगविहे पण्णत्त, तं जहा-दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए सं. खिजपएसिए असंखिजपएसिए अणंतपएसिए। से त अचित्ते दव्वखधे ॥ सू० ४९ ॥
छाया-अथ कोऽसावचित्तो द्रव्यस्कन्धः ? अचित्तो व्यस्कन्धः-अनेकविधः प्रज्ञप्तः, तद्यथा--द्विप्रदेशित: त्रिदेशिको यावत् दशप्रदशिकः संख्येय प्रदेशिकः असंख्येयप्रदे शकः अनन्तप्रदेशिकः । स एपः अचित्तो द्रव्यस्कन्धः।४९। का जो व्यवहार है उसके उच्छेद का प्रसंग प्राप्त होगा। (से त सचिचे दव्वखधे) इस प्रकार से यह सवित्त द्रव्यस्कन्ध है । ।। सूत्र ४८॥ अब मुत्रार अचित्त द्रापस्कन्धों श निरूपण करते हैं
"से किं तं अचित्ते दवखंधे' इत्या दे । ॥ सूत्र ४९ ॥
शब्दार्थः-(से किं तं अचित्ते दळखंभो) हे भदन्त ! अचित्त द्रव्यस्कंध का क्या स्वरूप है ? (अचिने दव्यवखंधे अणेगविहे पण्ण) उत्तर-अचित्त द्रव्याकंध अनेक प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) जैसे - (दुपएसिए तिपएसिए जाव दसपएसिए मंखेज्जपसिए असंखेज्जपएसिए अणंतपससिए) दो प्रदेशवाला अचित्त द्रव्यस्कध, तीन प्रदेशवाला अचित्तद्रव्यस्कंध, यावत् दश प्रदेशवाला अचित्तद्रव्यस्कंध, संख्यात प्रदेशवाला अचिनद्रव्यस्कन्ध, असंख्यात प्रदेश वाला अचित्त द्रव्यस्कंध, और अनन्तप्रदेश
(से तं दरखघे) मा प्ररे सथित द्र०५२४-पना २१३५नु पg Ast સમાપ્ત થાય છે કે સુહ ૪૮ છે
હવે સૂત્રકાર અચિત્ત દ્રવ્યસ્કન્ધના સ્વરેપનું નિરૂપણ કરે છે– "से किं त अचित्त दबखधे” त्या
शहाय-(से किं तं अचित्त दव्वखधे?) शिष्य गुरुने सेवा प्रश्न ४३ હે ભગવન ! પૂર્વ પ્રસ્તુત અચિત્ત દ્રવ્યસ્કાનું સ્વરૂપ કેવું છે?
उत्तर-(अचित्त दवखधे अणेगविहे पण्णत्तो) अायत्तद्र०५२४.५ भने २ने ४ो छ. (तजहा) भ ...
(दुपएसिए, तिपएसिए जाव दसपएसिए, सखेजपएसिए, असंखेजपएसिए, अणंतपएसिए) में प्रदेशपाणी अयित्त द्र०य२४.५ प्रदेशका मथित દ્રવ્યસ્કન્ધ એ જ પ્રમાણે દસ સુધીના પ્રદેશવાળ અચિત્ત દ્રવ્યસ્કલ્પ, સંખ્યાત