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अनुगोगवन्द्रिका टीका. सू० ६२ सचित्त व्योपक्रमनिरूपणम्
छाया--अथ कोऽसौ सचित्तो द्रव्योप कमः ? सचित्तो द्रकोपक्रमस्त्रिवियः प्रज्ञप्तः, तयथा-द्विपदश्चतुष्पदो पदः । एककः पुनईि विधः प्रज्ञप्तः, तद्यथापरिकर्मणि प व तुबिनाशे च सूत्र ६२॥
अब सत्रकार सचित्त इत्योपक्रम का रूप प्रकट करते हैं"से कि तं सचित्ते दरोवरकमे” इत्यादि । ।सत्र ६२॥
शब्दार्थ--(से किं तं सचिचे दविकमे) हे भदन्त ! सचित्त द्रव्योपक्रम का या स्वरूप है?
(सचित्त दन्वोरक्कमे तिविहे पण्णत्ते) उत्तर-सचित्त द्रव्योपक्रम ३तीन प्रकार का कहा गया है। (तं जहा) जैसे (दुपए चउपए अपए) द्विपद, चतुष्द और अद। इन में से नट तक आदरूप द्विपद सचित्त द्रव्यो पक्रम है। हस्ती अश्व आदिरूप चतुष्पद सचित द्रव्योरक्रम है। तथा आम्रादिवृक्षरूप अ द सचित्त द-यो क्रम है। (एकिके पुण दुविहे पण्णत्ते) इनमे भी एक एक दो २ प्रकारका कहा गया है । (तौं जहा) जैसे-(परिक्कमे य इत्युविणासे य) किर्म में और व तु विनाश में अवस्थित वस्तु में गुण विशेष का आधान वरना परिकर्म है। इस परिकम में परिकर्म विषयवाला द्रव्योपकार होता है। द्विपदवाले नट-नर्तक आदि जन घृत आदि द्रव्य के उपयोग से जो अपने बल आदि की रद्धि करते हैं अथवा और अनेक साधनों से कर्ण एवं स्कन्धों को बढाते हैं वह रिकम को आश्रित करके सचित्त द्रव्यो
હવે સત્રકાર સચિત્ત દ્રપકમના સ્વરૂપનું નિરૂપણ કરે છે–
“से कि त सचित दव्वोरक्कमे" त्याdि
Al-(से कि त सचिते दवोवक्कमे ?) शिष्य गुरु२ । प्रश्न पूछे छ । सन् ! सचित्त द्रव्योपभानु ३ २१३५ छ ?
उत्तर-(सचित्ते दबोवक्कमे तिविहे पण्णत्ते) सचित्त द्र०या५भत्र मारने। छो छ (तजहा) ते मारे। नीचे प्रमाणे .
(दुपए, चउपए, अपए) (1) ६५६, (२) यतु०५४ भने (3) ४५६ नट, नत: આદિરૂપ દ્વિપદ સચિત્ત દ્રવ્ય પક્રમ છે, ગજ, અશ્વ આરિરૂપ ચતુષ્પદ સચિત્ત દ્રપક્રમ છે, તથા આગ્રાદિ વૃક્ષરૂપ અપદ સચિત્ત દ્રવ્યાપક્રમ છે.
एकिके पुण दुविहे पण्णत्ते) से प्रत्ये:ना ५५ मध्ये २ या छ. (तंजहा) म (परिकमे य वत्थुविणासे य) (१) पश्मिन। माश्रित प्रशने शुक्षविशेषनु भाधान કરવું તેનું નામ પરિકમ છે. આ પરિકમમાં પરિકમ વિષયવાળો દ્રવ્યોપમ છે. દ્વિપદવાળા (બે પગવાળા) નટ, નતક આદિજન ધી આદિ દ્રવ્યના ઉપયોગથી પિતાના બળ આદિની જે વૃદ્ધિ કરે છે, અથવા બીજા અનેક સાધનેથી કર્ણ અને ધાને